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________________ भूपतिभुवने गत्वा राज्ञः सुतां स राक्षसः // शीघ्र मेव समादायाथ पश्चाद्वलितस्ततः // 35 // Ke पर्वतस्य गुहायां तां मुक्त्वा द्वारे स्वयं स्थितः // प्रार्थयामास कामांधः सँश्चाटुवचनैश्च सः // 36 // K नहि मेने परं सा तु कथमपि तदाग्रहम् // ततोऽसौ राक्षसो रुष्टो वक्ति राज्ञः सुतां प्रति // 37 // | यदि न मन्यसे दुष्टे तदा ते स्मर रक्षकम् // अधुना तव छेत्स्यामि मस्तकं च ममासिना // 30 // | अथ राक्षसपृष्टेऽपि प्रच्छन्नं स द्विजः स्थितः // विलोकयति तत्सर्वं राक्षसस्य विचेष्टितम् // 39 // पश्यति राजपुत्री च तं सन्मुखस्थितं द्विजम् // परंतु राक्षसः पृष्ट स्थितं द्विजं न पश्यति // 40 // ततो राजकुमार्योक्तमात्मना यस्तृतीयकः // ममात्र शरणं सोऽस्तु तेनेति तद्वचः श्रुतम् // 41 // यावत् स राक्षसः पश्चाद् लोकयति तदा द्विजः॥ जघान स्वासिना दुष्टं पंचत्वं च ततोऽगमत् // 42 // | एवं तं राक्षसं दुष्टं मृतं विज्ञाय सा सुता // नृपस्यातीव हृष्टाऽभूत ततो विप्र उवाच ताम् // 43 // | सुंदरि वद सत्यं त्वं कासि कस्य सुतासि च // सा प्राह विक्रमस्यास्मि लीलावत्यभिधा सुता // 44 // तच्छ्रुत्वा तां समाश्वास्य द्रुतं मुमोच तद्गृहे // ततः पश्चात् समागत्य मुक्तं तन्मृतकं च कौ // 45 // स्वमित्रस्य स्थितः पाश्वे पूर्णो यामोऽभवत्तदा // क्षत्रियस्य सुतो यामे तृतीये जागृतोऽथ सः // 46 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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