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________________ - वत्सेनोक्तं त्वया तत्र दृष्टं किमपि कौतुकम् // काप्यपूर्वा श्रुता वार्ता भवेन्चेन्मे तदा वद // 40 // अनेकदेशदृश्वानो विविधाश्चर्यदर्शिनः // यतो नरा भवंति हि श्रुत्वेति सोऽवदत्ततः // 41 // - भो कुमार मया दृष्टं तत्रैकं कौतुकं महत् // तच्च शृणु पुरे तस्मिन् नेको धनपतिर्महान् // 42 // व्यवहारी द्विधा चापि यथार्थनामकः स्वयम् // वसति स्म सदा कुर्वन् व्यापारं सर्वतोऽधिकम् // 43 // | तस्य पिता मृतो वृद्ध श्चितायां ज्वालितोऽपि सः // गृहमध्ये समागत्य प्रातः सुप्तः पुनस्तथा // 44 // प्रज्वालितः पुनः सोऽपि तागत्य निजेगृहे // तथा सुप्तः पुनारात्रौ जातमेवं पुनः पुनः // 45 // वर्षमेकमभूत्तस्य कुर्वतश्च गतागतम् // तत्पुरे कोऽपि विद्यावान् नास्ति यस्तं निवारयेत् // 46 // | अस्ति दृष्टं मया तत्र ह्येवं भो वत्स कौतुकम् // चिंतयत्येतदाकर्ण्य कुमारोऽतिचमत्कृतः॥४७॥ | अदृष्टा वर्तते नून मियं वार्ता न कर्हिचिद् // मया दृष्टा श्रुता पूर्व मतो दृष्टुं समुत्सुकः // 48 // | ततः सर्वमनापृच्छय कौतुकालोकनोत्सुकः॥ मित्रत्रययुतस्तत्र वत्सोऽसौ नगरे गतः // 49 // यत उक्तं जना ये वै कौतुकालोकनार्थिनः // तेऽलसा न भवंत्येव चित्तेऽतीव चमत्कृताः॥५०॥ अथ तत्र पुरे पूर्व प्रवेशाचिंतितं च तैः // अभुक्त्वा नगरे नूनं नहि गम्यं कदाचन // 51 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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