________________ चरित्रम् 34 हृदये वृद्धवाक्यं तद् विधाय नगराइहिः // भोजनाय स्थले क्वापि पेचुस्ते धान्य मुत्तमम् // 52 // श्री सदैववत्स ततो भुक्त्वा च ते स्वस्थीभूता उक्तमतोऽग्रगैः // स्मरणपथमायाति कार्य भुक्तेरनंतरम् // 53 // लज्जा स्नेहः स्वरविशयता बुद्धयः सौमनस्यम् // प्राणोऽनंगवचनसमता दुःखहानिर्विलासाः // 54 // धर्मशास्त्रं सुरगुरुनतिः शौचमाचारचिन्ता // शस्यैः पूणे जठरपिठरे प्राणिनां संभवन्ति // 55 // पटहस्य ध्वनिश्चागात् तेषां कर्णपथे तदा // वदत्येवं जनस्तत्र पटहध्वनिकारकः // 56 // वणिग्धनपतेर्यो वै पितरं ज्वालयिष्यति // तस्य निजां सुतां स्वर्णलक्षयुतां स दास्यति // 57 // एवंविधध्वनिं श्रुत्वा पटहं स्पृष्टवांस्तदा // स्वमित्रं सदयः प्रेष्य पूर्व ज्ञातस्वरूपकः // 58 // ज्वालं ज्वालं स खिन्नश्च पितरं बहुदुःखितः // ततो वत्सं समित्रं तं स्वगृहे स समानयत् // 59 // गच्छताथ कुमारेण स्त्रीणां गीतिसमुन्नवः // महान् कलकलः श्रुतः पथ्येकस्मिन् गृहे तदा // 6 // Ke पृष्टं तदा कुमारेण तं व्यवहारिणं प्रति // मंडित मस्ति भो श्रेष्ठिन् किंकिमप्यत्र मंडलम् // 6 // Ka यदेवं श्रूयते स्त्रीणां गीतकोलाहलध्वनिः // धनपतिरथोवाच शृणु त्वं भो नरोत्तम // 62 // अस्यापि शंकरारव्यस्य मद्वद् विप्रस्य मंदिरे / मंडितमंडलस्यास्य वर्षमेकमजायत // 3 // 70