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________________ वार्तालापेन संजाता प्रीतिरेवं तयोः सदा // मूषकश्च सदा तस्यानुगमनं करोति हि // 17 // एकदा करिराजोऽथ गजग्रहणलोलुपैः // तृणाच्छादितगर्तायां रचितायां पपात सः // 18 // Raबहुकालेऽप्यनायातं विलोक्य मूषकोऽधृतिः // विलोकितुं गजं द्रुतं बभ्राम स इतस्ततः // 15 // - क्रमेण तेन गर्तायां गजो दृष्टस्तथाविधः // विलोक्य मूषकस्तं च प्रवृत्तो रोदितुं तथा // 20 // गजेनोक्तं तदा मित्र प्रीत्या किं मे फलं तव // तच्छ्रुत्वा मूषकः प्राह भो मित्र शृणु मद्वचः // 21 // मोचयितुं ममाद्यैव त्वां समयोऽस्ति संकटात् // इत्युक्त्वा मूषको जातिं तत्राकारितवान्निजाम् // 22 // ते गजेन्द्र प्रति प्रोक्तं जातिभक्त वयं सदा // श्वान इव गजेन्द्र स्मो न निजजातिविद्विषः // 23 // इत्युक्त्वा मूषकाः सर्वे मिलिला ते स्वशक्तिभिः // निजपादैश्च गर्तायां घूलिपटलमक्षिपन् // 24 // रात्रेर्यामे चतुर्थे ते धूलिपटलपूरिता // गर्ता तेन गजो द्रुतं ततोऽपि बहिरागतः // 25 // कार्यकरा भवत्येवं समये लघवोऽपि हि // इति विचार्य तेनैकः सज्जनः स्वसुहृत्कृतः॥२६॥ एकं मित्रममित्रेषु ह्येकं सूनुमसूनुषु // एकं नेत्रमनेत्रेषु जगमित्राणि तत्कुरु // 27 // श्रुत्वेत्थं वृद्धवाक्यं स श्लोकस्थार्थ विचार्य च // चकार त्रिणि मित्राणि साहसबलवन्ति च // 28 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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