________________ सदैववत्स 72 चरित्रम् श्वसुरस्य गृहे वासश्चिरं श्रेयस्करो नहि // भवति तद्गृहे स्थित्या मनोदुःखं च जायते // 5 // लज्जया पारवश्यादि हेतुभिः सर्वदा सताम् // तथा लोकापवादश्च भवतीति बहु श्रुतम् // 6 // शिरसा धार्यमाणोऽपि सोमः सौम्येन शंभुना // सर्वदा कृशतां याति कष्टः खलु पराश्रयः // 7 // सैवं मनोविनोदाय विद्वद्गोष्ठीसुखप्लुतः // तदाति वाहयामास दिनानि कतिचित्तथा // 8 // संगीतं सुकवित्वं तांबूलं प्रियजनस्य संदेशः॥ सुचरित्र मिष्टगोष्टी नवरसवसतयः षडिमाः // 9 // | अन्यदासौ कुमारश्च श्लोकत्रयं समीरितम् // केनचित् कविनाऽौषीत् कर्णाभ्या मित्थमदभुतम् 10 मित्रवान् साधयत्यर्थान् दुःसाध्यानपि तद्युतः // तस्मान् मित्राणि कुर्वीत सामान्यानात्मनः खलु 11 आपन्नाशाय विबुधैः कर्तव्याः सुहृदोऽमलाः // न तरत्यापदं कश्चिद्यो मित्रेण विवर्जितः // 12 // | कुर्वीत बहुमित्राणि सबलान्यबलनिवा // गजराजो वने बद्धो मूषकेण विमोचित H // 13 // | उंदिरेण वने क्वापि गजराजः सखा कृतः // अथैकदा करी प्रीत्या प्राह तं मूषकं प्रति // 14 // भामूषक कमस्माक मुपकारं करिष्यसि // तेनोक्तं भो कदाचिद्धि कार्य स्याल्लघुनाप्यतः॥ 15 // असाध्यं गुरुभिः किंचित्कार्य कुर्याबघुः क्षणात् // व्यसाध्यं तमो भूमिगृहे दीपः क्षिपेन्न किम् // 16 //