SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उअणं भुवण क्वमण अच्छमणं तहयणादिवसंमि // सरस्सवितिन्नि दासा का गणणा इवरलोगस्स सभ्यास्ततोऽपरेप्रोचुः स्वामिस्तद्दष्टमंत्रिणः // कीदृशं चेष्टितं राज्ञा प्रोक्तमेवंविधाः खलाः // 9 // - सर्पः क्रूरो हि जीवेषु सास्क्रूरतरः खलः // मन्त्रौषधवशात् सर्पः खलः केनोपशाम्यते॥९५॥ राजोवाच ततो वत्सं सावलिंगा क्व मे सुता // आसन्नग्रामभट्टस्य गृहे स्थितेति सोऽवदत् // 16 // - तच्छ्रुत्वा भूपतिश्चाथ तामानेतुं सुखासनम् // स्वपुत्रं शक्रिसिंहं च प्रेषयामास सत्वरम् // 97 // ननाम सोऽपि गत्वा स्वां भगिनीं तत्र हर्षतः // त्वमजरामरो भूया इत्याशिषं ददौ च सा // 98 // | हसित्वा प्राह तां सोऽपि हे भगिनि वयं सदा // प्रसादादेव पत्युस्ते जाताः स्मो ह्यजरामराः॥९९ // तया विस्मितया पृष्टं भ्रातरेवं कथं वद // तदा तेनापि संप्रोक्तं सर्व युद्धस्वरुपकम् // 1000 // सावलिंगा ततो भ्रात्रा सह हर्षवती सती // सुखासनस्थिता द्रुतं प्रतिष्ठानपुरं गता // 1 // तत्रागत्य च सा स्वस्य ननाम पितरं मुदा // पितापि हर्षतस्तस्यै ददावित्याशिषं तदा // 2 // सुते सौभाग्ययुक्ता च सपुत्रायुष्मती भव // वत्सोऽथ प्रियया सार्द्ध तत्र सुखेन तिष्ठति // 3 // यावद्वर्षाचतुर्मासी सुखेन तत्र स स्थितः // ततो विचारयामास स्वमनसीति चैकदा // 4 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy