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________________ ततः सर्वान् समानाय्य प्रत्येकं चैव हस्तिनः / / स्वैः स्वैः कुंभस्थलैः कार्यः प्राकारस्तद्धटात्मकः // 7 // | तत्र प्रक्षिप्य वीरोऽयं गृह्यते यदि तद्वरम् // इति मन्त्रिवचः श्रुत्वा सुष्ठपायो नृपोऽवदत् // 72 // | गजघटा समानीता तया वत्सश्च वेष्टितः // अथासन्ना विधीयन्ते हस्तिनस्ते शनैः शनैः // 73 // | | एवं वत्सोऽपि संकीर्णहस्तिमध्ये पपातह // क्वाधुना यास्यसि त्वं भो इत्युचुस्ते नृपादयः // 74 // | | हसित्वाथ कुमारः स सिंहनादं तथाऽकरोत् // त्रस्ता गजा यथाऽधावन् दिशोदिशं भयाकुलाः // 7 // हस्तिपकैः गजाः सर्वे ह्यंकुशैस्ताडिता भृशम् // अपि ते संमुखास्तस्य न बभूवुः कथंचन // 7 // यद्गजानां बलात्तस्य ग्रहणे हषों महानभूत् // नृपस्य ते ततो भीता दूरं याता गजा अपि // 7 // | अजासमूहवन्नष्ट्वा दुरं च करिणो गताः // अथ चिंतातुरं प्रोचु मन्त्रिणस्तेनृपं वचः // 7 // स्वामिन्नसौ प्रकारैः कैरपि धर्तुं न शक्यते // तन्निशम्य बभूवातिचमत्कृतमना नृपः // 79 // | सन्नाद्यायुधं त्यक्त्वा च पादचारेण भूपतिः // प्रवृत्तः सन्मुखं गंतुं कुमारस्य त्वरान्वितः // 8 // कुमारोऽपि तथा दृष्ट्वा स्वयं गत्वाथ प्राणमत् // यतश्च सुकुलोद्भूतो भंस्यति विनयानहि // 81 // नृपः सस्नेहमालिंग्य ज्ञात्वा वत्सं पराक्रमात् // स्वागतोदंतमापछद् बहुमानेन हर्षतः // 8 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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