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________________ श्री सदैववत्स - हेतुना तेन हे राजस्तन्नामाप्यत्र वर्तते // तन्निशम्य नृपश्चैतन् मन्त्र्यादीनां पुरोऽवदत् // 59 // KE पृथिव्यां कोऽपि नास्त्येव सदयं यश्छलेन च // बलेन कलया जित्वा तस्यासिग्रहणे प्रभुः // 96 // नूनमेष कुमारोऽस्ति परमत्रातिलजितः // श्वसुरवर्गसद्भावान् नात्मा तेन प्रकाश्यते॥१॥ | अन्यस्य क्वेशी शक्तिपिंचाशझटानपि // जयेत् किंतु पितुः कोपाद् दृष्टापमान आगतः // 62 // त्रयः स्थानं न मुंचंति काकाः कापुरुषा मृगाः अपमाने त्रयो यांति सिंहाः सत्पुरुषा गजाः // 3 // एवंविधनृपोक्तानि निशम्य ते सभासदः॥ देव संभाव्यते सत्य मेवमेवेति चाबुवन् // 64 // ततो राजा जगादास्ति युक्तिः किं कापि सा यया // कथमपि विना युद्धं जीवन् सन्नेष गृह्यते॥६५॥ - महानदीप्रतरणं महापुरुषविग्रहम् // महाजनविरोधं च दरतः परिवर्जयेत् // 66 // विलोक्य निजशक्तिं च विधेयं कार्यमत्र वै // अशक्यानि च कार्याणि नैव कुर्याद विचक्षणः // 67 // मुख्यमंत्री निशम्यैतद् ब्रूतेस्म देव अस्ति हि // सुकरं ग्रहणं तस्य गजाग्रे सबलोऽपि किम् // 66 // स धनी यस्य भूभागो यस्याश्वास्तस्य मेदिनी // स जयी यस्य मातंगा यस्य दुर्गःस दुर्जयः // 69 // जयत्येकोऽपि हि गजो वाजिलक्षचतुष्टयम् // तस्माद् गजवलं यस्य कथं तस्य पराजयः // 7 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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