________________ नूनं नायं न चौरोऽस्ति सामान्यमानवश्च वा // किंतु संभाव्यते कोऽपि वीरेभ्योऽप्यधिको महान्॥४७॥ अथवा कोऽपि देवोऽस्ति महाविद्याधरश्च वा // अनेन सह मे युद्धं तस्माच्छेयस्करं नहि // 48 // - युद्धं निषेधयामास विचार्येति महीपतिः // वत्समुवाच हे वीर स्वात्मानं त्वं प्रकाशय // 49 // IS निजसत्यस्वरुपं न सैवं प्रकटयत्यपि // कामसेनां सतो भूपः सर्व माकार्य पृच्छति // 50 // दिवसाः कति संजाताः वसतोऽस्य गृहे तव // तथैव तत्कुलं गोत्रं वेश्ये ज्ञातं न वा त्वया // 51 // तदा सा प्राह हे स्वामिन् गृहे समागतस्य मे // केवलमस्य चत्वारि जातान्यहानि संति वै // 52 // किंचास्य कुलगोत्रादि न वेद्मि किंचिदप्यहम् // विद्यते परमस्यासि र्नामांकितो गृहे मम // 53 // | तच्छ्रुत्वासिस्ततोराज्ञाऽऽनायितश्च विलोकितः // तत्र दृष्टं कुमारस्य खगोऽयमिति चित्रितम् // 54 // | स्वर्णवांस्तदा दृष्ट्वा प्राह राजातिविस्मितः // अभिज्ञानेन नूनं त्वमनेन सदयोऽसिभोः // 55 // प्रकटय त्वमात्मानं विधायातः कृपां मयि // वत्सेनोक्त महो राजश्चातुरी ते वरीयसी // 56 // मालवाधीशपुत्रः क्व क्व चाहं चौरपुंगवः // राज्ञोक्तमसिमध्ये तु नामास्ति लिखितं तव // 57 // वत्स उवाच तत्सत्यं खङ्गोऽयं सदयस्य हि // वत्सं जित्वा गृहीतोऽस्ति स्वद्यूतकलया मया // 58 //