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________________ श्री सदैवक्स - श्रुत्वैनमथ वृत्तांतं नारदवत् स कौतुकी // गत्वा तत्र गिरौ वीरानकथयच्च तान् प्रति // 36 // - युष्ममित्रस्य भोवीरा कंचुकस्य प्रदानतः॥ प्रतिष्ठानपुरे शूलारोपणं जायते ध्रुवम् // 37 // स्वशक्त्या तेन युष्माभिः सहाय स्तस्य युज्यते // कर्तुं यतोऽधुना कालो भवतामस्ति शोभनः॥३८॥ विण सिस्सपरिस्का सुहपरिस्काय होइ संगामे // वसणे मित्तपरिस्का दाणपरिस्काय दुक्काले // जानीयात्प्रेषणे नृत्यान् बांधवान् व्यसनागमे // मित्रमापदि काले च भार्यां च विभवक्षये // 39 // तन्निशम्याथ ते वीराः प्रतिष्ठानपुरं प्रति // कुमारस्य सहायार्थ पंचापि च समागताः // 40 // गजाश्वरथपत्यादि स्वविद्याया बलेन तैः // नृपसैन्यं विकुर्वितं तत्सैन्यं चाप्ययुध्यत // 11 // KE भग्नं राजबलं प्रान्ते छिपंचाशद् भटा अपि // हरसिद्धिप्रसादात्ते प्राप्तास्तत्र पराजयम् // 42 // संग्रामे सुभटानां च कवीनां कविमंडले // दीतिर्वा दीप्तिहानिर्वा मुहर्तादेव जायते // 43 // स्वकीयं सकलं सैन्यं भग्नं दृष्ट्वातिचिन्तितम् // अहो केनापि सैन्यं मे भग्नं नाभूत् पुरा मनाक् // 44 // अधुना मे द्विपंचाशद्वीरयुतबलस्य हि // विनाशोऽभूत क्षणं यावदेवं चिंतातुरो नृपः॥ 45 // पश्यन्नितस्ततस्तस्थौ ततोऽस्य लक्षणादिकम् // अपूर्वरुपलावण्यं दृष्ट्वा चित्ते व्यचारयत् // 46 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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