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________________ Kयतोऽहमुक्तवेलायां स्वस्थानगमनोत्सुकः // इत्येवं तद्वचः श्रुत्वा हसति नागरा जनाः // 24 // चौरस्याप्युक्तवेलायां यदहो स्वगृहं प्रति // संप्रत्यपि दृढीभूतो गन्तु मस्ति मनोरथः // 25 // ततस्तेन समं युद्धं नृपादेशाद् बभूवह // बहुजनक्षयं दृष्ट्वा चिंतयति नृपो हृदि // 26 // अहो मम भटानां तु भवत्यत्र क्षयो महान् // चौरस्य मनसि क्षोभो भवति न मनागपि // 27 // तथैव तस्य वालाग्रखंडनं शस्त्रतोऽपि न // अतो मम द्विपञ्चाशद्वीरानुत्थापयाम्यहम् // 28 // तेषां त्वद्यापि वीराणां निद्रोहीना परं न हि // वीरान् संतोषयामास बलिदानादिना नृपः // 29 // ततस्तेऽपि नृपादेशात् सदयेन समं तदा // युद्धं कर्तुं प्रवृत्ताः स वत्सोऽपि तैः समं तथा // 30 // | समर्था नाभवन् जेतुं वत्सं तेऽपि महाबलाः॥ युद्धं दृष्ट्वा जनाः सर्वे मनस्यतीव विस्मिताः 31 // विद्यासिक इतः कोऽपि नारदेन समस्तदा // युद्धस्य कौतुकी तत्र विलोकनाय चागतः // 32 // वत्समेकाकिनं दृष्ट्वा सोऽपृच्छद् भोमहाभट // पक्षे सहायकर्ता ते किं कोऽपि दृश्यते नहि // 33 // असहायः समर्थोऽपि तेजस्वी किं करिष्यति // निर्वाते पतितो वह्निः स्वयमेव प्रशाम्यति // 34 // तेनोक्तं पंच वीरा मे धनदगिरिवासकाः // सन्ति सहायकर्तारः परं मे न प्रयोजनम् // 35 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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