________________ श्री सदैववत्स चरित्रम 68 सत्वमस्ति प्रशंसाह मेके प्रोचुयोरपि // चौरोऽपि सत्यवादित्वपालनाय समागतः // 16 // | समयातिक्रमस्तेन मुत्कलेन कृतश्च न // मृत्युन्जयेन यो नष्ट्वा दूरदेशं गतश्च न // 17 // मृत्युभीतस्त्यजत्येव पितृमातृप्रियासुतान् // वज्रीत्या त्यजन् सर्व मैनाकोऽब्धौ पपात ह // 18 // प्रोक्तं तेन ततो राज्ञा चौरोऽयं निश्चयात्मकः॥ प्रतिज्ञापालनान्नूनं संभाव्यते महाकुलः // 19 // | नीचानां वचनं मिथ्या भवत्येव तु सर्वथा // प्रतिज्ञां पालयंत्येवं महाकुलसमुद्भवाः // 20 // दिग्गजकूर्म कुलाचल फणिपति विघृतापि चलति वसुधेयम् // प्रतिपन्न ममलमनसां न चलति पुंसां युगान्तेऽपि // 21 // // मार्तण्डान्वयजन्मना क्षितिभृता चांडालसेवा कृता, रामेणाद्भुतविक्रमेण सहसा संसेविताः कंदराः॥ | भीमाद्यैः शशिवंशजै नृपवरै र्दास्यं कृतं रंकवत्, स्वीयोक्तप्रतिपालनाय पुरुषैः किं किं न वांगीकृतम् // स्वस्थाने ततः प्राप्तः सोमदंतो नृपाज्ञया // कुमारोऽथ तलारक्षं प्रत्याह विनयान्वितः // 22 // | भोतलारक्ष राज्ञो यस्तवादेशो भवेयथा // तथा तं कुरु शीघ्रं त्वं विभमि न मनागपि // 23 //