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________________ // भूतानुकम्पा प्रियवागयाचा लजा क्षमौचित्य मुदारता च // K कृतज्ञतान्योपकृतिः सुशीलं स्थानानि की देश कीर्तितानि // 5 // सत्यीकर्तुं च स्वात्मानं भो पुरुषोत्तम त्वया // अत्रागत्य तु मत्कीर्ते विनाशश्च परं कृतः // 6 // इत्येवं सोमदंतस्य श्रुत्वा वाक्य मुवाच सः॥ एवं वक्तुं च युक्तं च कर्तु मेव भवादृशाम् // 7 // उपकर्तुं प्रियं वक्तुं कर्तुं स्नेहमकृत्रिमम् // सजनानां खभावोऽयं केनेन्दुः शिशिरीकृतः // 8 // धननाशं मुधा श्रेष्ठिन् कथं ते कारयाम्यहम् // किंतु नीचस्वभावोऽय मुपकर्तृविनाशकः॥ 9 // छिनत्त्यंबुजपत्राणि हंसस्तजीवितोऽपि हि // संतोषयति तान्येव दूरस्थोऽपि दिवाकरः // 10 // | भो श्रोष्ठिंस्त्वं सुखेनैव गत्वेतो नृपसंनिधौ / व्यवहारप्रसिध्यथै स्वात्मानं मुक्तलीकुरु // 11 // नृपं विज्ञापयामास श्रेष्ठी गत्वा सभां प्रति // हे स्वामिन्नस्ति चौरः स पुनरत्र समागतः // 12 // तेनाहं मुत्कलो राजन् जातोऽस्मि संप्रति ध्रुवम् // तच्छूवा विस्मिताः सर्वे ह्युचु स्तेऽपि नृपादयः॥१३॥ सोमदंत स किं चौरः पुनरत्र समागतः // एवमेवास्ति हे राजनित्युक्तं व्यवहारिणा // 14 // तदा सर्वसभा वक्ति सती चातिचमत्कृता व्याख्यामहे वयं सत्वं श्रोष्ठन् कस्योभयोरपि // 15 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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