________________ श्री सदैववत्सम चरित्रम् आनीतं पुरतो वस्त्रभूषणादि मनोहरम् // बभूव सापि तल्लब्ध्वा महाहर्षवती सती // 93 // यौवनान्वितनारीणां स्वामी सौभाग्यसुंदरः // मनोज्ञाभूषणानि च वस्त्राणि सुखदानि वै // 9 // प्रभातेऽथ कुमारेण प्रोक्तं निजप्रियां प्रति // ममासिफलके हर्षात्तत्रैव विस्मृते मया // 95 // तेनाद्य तत्र गत्वाहं समानयामि ते प्रिये // सोवाच तर्हि हे नाथ पुनः कदाऽऽगमिष्यसि // 96 // - कल्ये समागमिष्यामि नून मेव मुवाच सः // यामाधिकः कदाचित् स्याद् विधेयं पूर्ववन्नहि // 97 // Kउक्तं तयापि भो स्वामिन् वचो वरतरं च ते // परं तत्र विलंबो न विधेयो भवता मनाक् // 98 // अथैवं तां समाश्वास्य प्राणप्रियां ततः स्थलात् // पुनश्च चलितो वत्सः प्रतिष्ठानपुरं प्रति // 99 // / द्रुतं धावन् स तत्पुर्यां समागत्य प्रहर्षतः / / सामदंतस्थितो यत्र वत्सस्तत्र समागतः // 900 // श्रेष्ठिनं प्रति तेनोक्तं सोमदत्त अहं खलु // आगतोऽस्मि प्रतिज्ञातवेलायां तव सन्निधौ // 1 // गत्वा राज्ञः समीपे त्वं स्वात्मानं मुक्तलं कुरु // श्रेष्ठिनोक्तं पुनः कस्मान्मरणाय त्वमागतः // 2 // आगतो माभविष्यश्चेत्त्व मत्र वै तदा धनात् // एन मुपद्रवं दूरेऽकरिष्यं सर्वमप्यहम् // 3 // अभविष्यच मे कीर्तिर्यथाऽनेन दयावता // चौरो धनठययेनापि मोचितो व्यवहारिणा // 4 //