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________________ चरित्रम् 66 समयातिकमान्नूनं प्राणप्रियजनस्य न // धारयति धृति चेतस्ततः काष्ठानि देहि मे // 69 / / श्री सदैववत्स विश्वभट्टस्तदा प्राह भवसिं कथमुत्सुका // स्वसर्दिनांतपर्यंतं तं विलोकय सुव्रते // 7 // ज्ञात्वैव स प्रतिज्ञा ते गतोऽस्ति तत्र त्वत्पतिः // कृतकार्यस्ततो नून मत्राधुनागमिष्यति // 7 // Keमरणानंतरं चासौ यद्यागच्छेत्पति स्तव // तदा किं तस्य यच्छामि प्रत्युत्तर महं शुभम् ||72 // इति निशम्य सा प्राह भ्रातस्तदा पुरो मम // कृता तेन प्रतिज्ञाऽभूत् प्रहरद्वय माश्रिता // 73 // तुर्ययामोऽधुना जातो विलम्बं कुरु मा मनाक् / / त्वं चेत् मे सत्यभ्रातासि तदा काष्ठानि देहि मे 74 | K कथमप्यथ नैवाहं स्थास्यामि भो महीतले // इत्येवमाग्रहं ज्ञात्वा तस्या भट्टेन मानितम् // 75 // | क्षिप्तानि काष्ठखंडानि तेन ग्रामावहिस्तदा // सापि तत्र शुचिर्भूत्वा प्रहर्षेण समागता // 6 // कालक्षपाय तत्रत्यैर्भट्टभृत्यैः शनैः शनैः॥ चिताथ चिता पश्चात् प्रज्वालिता चिताग्निना // 7 // | चिताया निर्गतो धूमश्चाकाशं व्यानशे भृशम् // यावद्वत्सो द्रुतं धावन्नागाद् ग्रामस्य संनिधौ // 78 // | बहुलधूममाकाशं तावद् दृष्ट्वाकुलोऽभवत् // अश्रुपाताविले तस्य नेत्रे चापि बभूवतुः // 79 // | चिंतयति ततः सैवं धूमेनतेन ज्ञायते // निश्चयेन चितायां सा प्रविष्टास्ति विलम्बतः // 80 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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