________________ अधुनाऽवेक्ष्यमाणा सा द्रुतमागमनं मम // भृशं तेन समाकुला संजाता वै भविष्यति // 35 // तेन लेखं लिखित्वा त्वं भो श्रेष्ठि स्तत्र सत्वरम् // प्रेषय कमपि स्वीयं नूनमेवं च ज्ञापय // 36 // E पाढं कार्यविशेषेण स्थितोऽस्ति पतिरत्र ते // ततोऽधृति च मा कुर्याः प्रातः खल्वागमिष्यति // 37 // चौयं कृत्वा स किं चात्र स्थितोऽस्तीति च मा लिखेः // अन्यथा स निजप्राणानपिवियोजयि ष्यति // 38 // इत्येवं तद्वचः श्रुत्वा कृतज्ञश्च दयापरः // स्वचित्ते चिंतयामास सोमदंतो वणिग्वरः // 39 // नरोत्तमोऽस्त्ययं वत्सो नूनं ममोपकारकः // अतः प्रत्युपकाराय वर्ततेऽवसरो मम // 40 // अन्यथापि समर्थो यः परकष्टं धनादपि // न स्फेटयति साफल्यं तदा तस्य धनस्य किम् // 41 // KI दत्तं न वित्तं करुणा निमित्तं लोभे प्रवृत्तं कृतमेव चित्तम् // यः संचयः केवल मत्र क्लृप्तः शोचं ति ते पातक मात्मक्लृप्तम् // 42 // इति विचित्य स श्रेष्ठी प्राह चैनं नरोत्तमम् // एवं चेदस्ति कार्य तद् याहि तत्र त्वमेव वै // 43 // कार्यमिद महं वीर भनदानादिनापि च // सर्व निर्वतयिष्यामि यत उक्तं महात्मभिः // 44 //