________________ चरित्रम् / सदैववत्स 64 अव्यापारेषु व्यापारं कर्तु मिच्छति यो नरः // स शीघ्र निधनं याति कीलोत्पाटीव वानरः // 23 // कुमारोऽकथयच्छ्रेष्ठिन् खेदं मनसि मा कुरु // नहि कश्चिदनर्थोऽयं मनसि मे कौतुकं परम् // 24 // इतश्चेद् गन्तुमिच्छामि तदेषां पश्यतां ध्रुवम् // हस्ततालमहं दत्त्वा व्रजामि स्वात्मनेप्सितम् // 25 // परं तु कामसेनाया गतेऽनों भवेन्मयि // परं तद्रक्षणायैवाह मत्रास्मि सुसंस्थितः // 26 // किंचिदपि मम त्वत्र दुःखं नहि भविष्यति // अतोऽस्मिन् भवता चिंता न विधेया मनागपि // 27 // अस्त्येकं मे परं कार्य तत्कर्तुं युज्यते त्वया // तेन त्वयोपकारो मे महान् कृतो भविष्यति // 28 // अत्र घेवंविधो मेऽन्यः कोपि न त्वां विना सुहत् // यस्याग्रे कथ्यते कार्य मिति श्रुत्वाऽवदद् धनी // 29 // भोनरोत्तम किं कार्य करणीयं वदाधुना // तच्छुत्वा हर्षितो वत्सः सोमदंतमुवाच सः // 30 // आसन्नवर्तिनि ग्रामे मयात्रागच्छता स्वयम् // विश्वरूपस्य भट्टस्य गहे मुक्तांगना मम // 31 // तस्या अग्रे मया प्रोक्तं यदहं पंचमे दिने // पाश्वे तवागमिष्यामि सत्यमेव वदाम्यहम् // 32 // तदा तयापि मे प्रोक्तं यदि त्वं पंचमे दिने // न प्रहरद्वयातीतेऽप्यत्र समागमिष्यसि // 33 // तदा ज्वलच्चितायां स्वां ज्वालयिष्याम्यहं तनुम् // एवं तया प्रतिज्ञात मस्ति च मम सन्निधौ // 34 //