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________________ श्री सदैववत्स चरित्रम् 62 अभिज्ञानेन तेनास्य गतं ज्ञेयं त्वया धनम् // कामसेना ततो राज्ञा पृष्टा सत्यं वद ध्रुवम् // 76 // केनायं कंचुको दत्तो तवास्ति बहुमूल्यकः // सा प्राह हे महाराज शृणु सत्यं वदाम्यहम् // 77 // गृहेऽस्माकं नटा श्चौरा विटादिबहवो जनाः // समागच्छन्ति चान्येऽपि नागरा रसिका जनाः॥८॥ किंचनायं न आचारः कदाचिदस्ति भूपते // यत् कस्यचित् स्वरूपं तु पुरः कस्यापि कथ्यते // 7 // तविषये मनस्तेषां जानात्यस्माकमेव च // विषयेऽस्मिन् महाराज सत्येवं तु किमुच्यते // 8 // कस्यापि गुप्तं संबंध कथयामो वयं यदि // तदास्माकं गृहे कोऽपिऽनागन्छेत् जीव्यते कथम् // 1 // सामादिनेदतो राज्ञा ततः पृष्टापि सा यदा // तत्कंचूकस्वरूपं तु नाकथयन्मनागपि // 2 // तदा रुष्टो महाराजः प्रत्याह दण्डपाशिकान् // कुरुतास्या महादंडं शूलिकारोपणं ध्रुवम् // 83 // तद्विषये पुनश्चाहं पृष्टव्यो नैव सर्वथा // यतश्चास्या गृहे चौरास्तिष्ठन्ति लोकदुःखदाः // 4 // चौराणा माश्रयं नित्य मियमेव प्रयच्छति // पृष्टापि चोत्तरं सम्यङ् न ददाति मनागपि // 85 // तोषिता दानमानाच्या मप्येषा कुलटा बहु // तथापि दुष्टजातित्वान्नैवात्मीया मनागपि // 86 // पासा वसा अग्नि जल ठग ठक्कुर सोनार // ए दस न होय आपणा मंकड बडुअ विडाल //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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