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________________ श्री सदैववत्स चरित्रम् चौरैः संतापिताः पौराः सर्वतः सन्ति भूपते // तदा क्रुद्धो नृपः प्राह मंत्रिज्यः सत्वरं वचः // 28 // रक्षा भो मंत्रिण स्तर्हि किं कुर्वन्ति सदा पुरे // तैरुक्तं भो महाराज प्रयत्न स्तैः कृतो महान् // 29 // परं चौरोपलब्धिस्तु न जातापि कथं प्रभो // तच्छ्रुत्वा भुपतिनाथ प्रतिज्ञा महनी कृता // 30 // पुरे नाहं प्रवेक्ष्यामि ह्यकृत्वा चोरनिग्रहम् // ततो राजा नवोढां तां प्रेषयामास मंदिरे // 31 // मंत्रिभिः सह गच्छन्ती प्रदोषेऽन्तःपुरेऽथ सा // सुखासने समारूढा भटैश्चाध्वनि संवृता // 32 // इतःस खर्परश्चौरो ज्ञात्वा वृत्तान्तमेव तम् // तत्रागत्याध्वतो राज्ञी माजहार स्वयुक्तितः // 33 // ततो निजसुरंगायां मुक्त्वा तां चापरैः सह // पंचचौरैः स्थितो देव्याः प्रासादमत्तवारणे // 34 // मंत्रिभ्यस्वप्रियालोपं श्रुत्वा राज्ञाथ चिंतितम् // अरे निजप्रियारक्षा क्रियते न मया यदि // 35 // तदा निजप्रजारक्षा विधास्येहं कथं सदा // इति खिन्नमना भूत्वा सावधानोऽभवद् द्रुतम् // 36 // | स्मृत्वाऽसा वग्निवेतालं निजसान्निध्यकारिणम् // अंधकारपटेन स्व माच्छाद्य खड्गपाणिकः // 37 // | अकाकी च स्वयंचौरग्रहणाय पुरं प्रति // रात्रौ भ्रामन् क्रमेणाथ हरसिद्धिस्थले गतः // 38 // | चौररूपं कृतं राज्ञा दृष्ट्वा तां चौरमंडलीम् // चौर्यस्य विविधां वाती चक्रुस्ते मिलिता स्ततः // 39 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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