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________________ अयप्रभृति भोवत्स यामिन्यां सबलो भवान् // वासुदेवबलेनापि त्वमजेयो भविष्यसि // 16 // दिन स्वेकतृणेनापि परं मृत्युमवाप्स्यसि // इति देव्या वरं दत्त्वा सोज्जयिन्यां निवासितः // 17 // - उज्जयिन्याः समारभ्य हरसिद्धिप्रभावतः // गिरिनारनगं यावत् सुरंगा तेन खानिता // 18 // दिवा तत्र सुरंगायां तिष्ठति खर्परोह्यसौ // भ्रमति नगरे रात्रौ व्यसनी चौरकर्मणः // 19 // चौर्य कृत्वा सुरंगाया तिष्ठत्यहि स खर्परः // दुःखं प्राप्ता स्ततो लोकाः स्वद्रव्यस्यापहारतः // 20 // पूत्कारं च जनाश्चक्रु गत्वा ते विक्रमं नृपम् // तलारक्षं तदाकार्य राज्ञाप्याक्रोश्य भाषितम् // 21 // समानय द्रुतं चौरं लोकोपद्रवकारकम् // गवेषयति तं रक्षः परं क्वापि न लभ्यते // 22 // इतस्तैलपदेवस्य तिलंगाधिपते रभूत् // श्रृंगारसुंदरी नाम्नी पुज्यतीव मनोहरा // 23 // - तस्याः पाणिग्रहं कर्तुं जगाम तत्र विक्रमः // उज्जायन्याश्च कुवैति रक्षण मत्र मंत्रिणः // 24 // परिणीयाथ तां राजा विक्रमोऽपि समागतः // कालेन कियता स्वस्य पुरस्य सन्निधौ मुदा // 25 // नगर्या बहिल्याने मुहूर्ताभावतः स्थितः // मांत्रप्रभृतयस्तस्य मिलनाय समागताः // 26 // प्रणम्य चोपविष्टानां राज्ञा पृष्टं सुशान्तिकम् // तैरुक्तं नगरे राजन् नधुमोपद्रवो महान् // 27 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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