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________________ श्री सदैववत्स चरित्रम् पितोवाचाथ हे वत्स विदेशं व्रजता सुखम् // मदने तस्य वृत्तान्तः कथ नं कथितस्त्वया // 704 // पुत्रः प्राहाथ हे तात केवलं लज्जयैव सः॥ मया सर्वोऽपि वृत्तान्तस्तवाये कथितो नहि // 705 // श्रेष्ठिनोक्तं विधेयं किं वद वत्स स्वबुद्धितः // त्वधुनाहं महाचिंतासमुद्रे बुडितोऽस्मि भोः // 706 // पुत्रेणोक्तं त्वया चिंता न विधेया मनागपि // जातमात्रस्त्वसौ त्याज्यः प्रच्छन्नं बहिरेव सः॥७०७॥ तस्य भाग्यवशात् किंचिद्भवेत्तद्भवतु स्वयम् // अथ क्रमेण संपूर्णे काले बालोद्भवोऽभवत् // 708 // तदा स श्रेष्ठिना रात्रौ जुकूलाबादितः सुतः॥ प्रच्छन्नं वाटिकामध्ये मुक्तो जानाति कोऽपि न // 709 // तदेवोज्जयिनीपुर्या गवंती गगनाध्वना // हरसिद्धि रधिष्ठात्री ददर्शाधः स्वयानतः // 710 // लक्षणालंकृतं तत्र पतितं वस्त्रवेष्टितम् // स्वपुत्रत्वेन तं बालं दृष्ट्वा सांगीचकार वै // 11 // - पश्चादेनं समादास्ये विचिंत्येति तयाथ सः // खर्परेण समाच्छाद्य रक्षितो निर्भयस्थले // 12 // प्रत्यागत्य तया स्नेहाद् गृहीतो बालको द्रुतम् // पालितुं वाटिकाभ। मालिकाय समर्पितः // 13 // खर्पराच्छादितत्त्वात् स स्वर्पर इति नामकः // तेन प्रोक्तः क्रमेणाथ वृद्धिं नित्यं समाप्नुवन् // 14 // सप्ताष्टवार्षिको जातो देव्याऽसौ पायितो रसैः॥ ततस्तस्मै वरो दत्त स्तया देव्या सहाशिषा // 15 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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