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________________ प्रवहणस्थवस्तूनां विक्रयाय मया पितः॥ प्रधाननाविकायास्ति दत्ता शिक्षा विभागशः // 92 // पिता वदति हे पुत्र त्वयैतच्छोभनं कृतम् // ततो यक्ष स्तया वध्वा निःशकं रमतेऽनिशम् // 93 // Ke एवं गतानि वर्षाणि त्रिचतुराणि नोगतः // गोत्पत्ति रभूत्तस्या वैक्रियौदारिकांगजा // 9 // कियत्कालेन स श्रेष्ठी जिनदासोऽपि सोत्सुकः॥ पश्चागृहे समायातो ह्यर्जयित्वा धनं बहु // 95 // लोकैश्च तस्य पित्रेऽथ दत्ता वर्धापनी यथा // हे श्रेष्ठिन्नद्य ते पुत्रः कुशलेन समागतः // 96 // चिंतयति तदा श्रेष्ठी मुग्धा एते जना ध्रुवम् // न जाति सुतं मे तु कुशलोऽस्ति गृहे सदा // 9 // अथ तमागतं दृष्ट्वा यक्षो नष्ट्वा गतः स्थलम् // स्वसुतमागतं दृष्ट्वा श्रोष्ठनाथ विचारितम् // 90 // अहो केनापि दुष्टेन व्यंतरेण मदात्मकम् // पुत्ररूपं विधायाहं छलितोऽस्मीति निश्चितम् // 19 // E एवं ध्यात्वाथ स श्रेष्ठी श्याममुखो बभूव ह // लोकापवादभीत्या च ह्यतिचिंतातुरोऽजनि // 700 // एवं तं पितरं दृष्ट्वा तेन पृष्टं पितः शृणु // अहं बहुविधे काले धनं लब्ध्वा समागतः // 701 // तेन च तव चित्तेऽद्य हर्षोत्पत्ति ध्रुवं भवेत् // तथापि त्वं मनस्येवं जातः शोकातुरः कथम् // 702 / / | यक्षस्य कपटं सर्व पित्रा प्रोक्तं सुताय तत् // जिनदास उवाचेदं ज्ञातं तात मया पुरा // 703 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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