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________________ न मुंचति घ सोऽप्येव माकृष्यमाणवाससः पपात गुन्बकं चैकं पद्मिनीपत्रवेष्टितम् // 46 // औत्सुक्यात्तद् गृहतिं च तावतोद्वेष्टितं तया॥ जटितो मोक्तिकैः रत्नैः कंचुको निसृतस्ततः॥४७॥ कंचुकं तं महामूल्यं दष्ट्वा कुमारपार्श्वतः॥ वेश्या लोभाभिभूता सा मार्गयतिस्म कंचुकम् // 48 // चिंतितमथ कुमारेण कंचुकोऽयमजानतः // बद्धो मे पञ्चवीरस्तै रिति संभाव्यते खलु // 649 // / KE ततः सदयवत्सेन दानवीरेण कंचुकः // प्रार्थनातः स वेश्यायाः हर्षात्तस्यै समर्पितः // 650 // कियती पंचसहस्री कियती लक्षापिकोटिरपि कियती॥औदायोन्नतमनसां रत्नवती वसुमती कियती अथापमानदुष्टापि साऽक्का हर्षवती सती // दृष्ट्वा तदानशौंडत्वं तस्मै शुभाशिषं ददौ // 652 // कामसेनाथ सोत्साहा स्थापयितुं तमाग्रहात् // बभूवापि कुमारस्तु तिष्ठति न प्रियोस्सुकः // 653 // Kगमने निश्चयं ज्ञात्वा कामसेनाथ प्राह तम् // दास्यामि नैव भो गंतुमभुक्त्वा स्वामितः परम् // 654 // इति वेश्याग्रहं दृष्ट्वा भोजनाय स्थितोऽप्यसौ // द्यूतस्य समयं ज्ञात्वा छूतस्थाने गतो द्रुतम् // 655 // दास्या रसवती कर्तु मारब्धा तावता च सा // दास्यै भोजनमादिश्य गंतुं लग्ना नराधिपम् // 66 // तदा तया स कंचुको वस्त्राणि विविधान्यपि // भूषणानि शरीरे स्वे सम्यगारोपितानि च // 657 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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