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________________ श्री सदेववत्स चरित्रम् कुमारेणाथ मित्राय स्वर्ण दत्तं कियत्ततः // गृहीत्वासौ ततः स्वर्ण हदृश्रेण्यां गतः स्वयम् // 35 // स्वयोग्यानि सुवस्त्राणि च स्वपत्न्युचितान्यपि // वस्त्रव्यापारितस्तेन क्रीतानि बहुमूल्यतः॥३६॥ ततो गांधिकहढाच कस्तूरीकुंकुमादिकम् // कपरं च गृहीत्वासौ गतोऽसौ वणिकालये // 37 // ततस्तेन गृहीतानि विविधाभूषणान्यपि // सोमदत्तगृहे सर्व कृत्वैकत्र मुमोच सः // 38 // तस्मै च कथितं श्रेष्ठिन् यदैतन् मार्गयाम्यहम् // तदा सर्व त्वया देयमिति कृत्वा चचाल सः // 39 // वेश्यायै कामसेनायै शेषं स्वर्ण स दत्तवान् // चतुर्भिर्दिवसैरेवं प्राप लक्षमितं धनम् // 40 // पंचमे दिवसे सोऽथ ह्युत्थाय प्रातरेव यत् // गृहीत्वा स्वोत्तरीयं च प्रवृत्तश्चलितुं ततः // 41 // कामसेना तदोवाच हे प्रिय त्वं क्व गच्छसि // विदेशं प्रति यास्यामि तेनोक्तमथ तां प्रति // 42 // तयोक्तं चाथ स्वामिन् मे मरणं चलिते त्वयि // भविष्यत्येव गंतुं त्वा नैव दास्याम्यहं ततः // 43 // इति तया निषिद्धोऽपि प्रवृत्तश्चलितुं यदा // तदा सा प्राह वेश्यापि स्वामिनं घटितं वचः // 4 // Ka वसिऊण मझ हिअए-जीअंगहि ऊणकच्छधलि // ऊसि-हापियहियं अमंमण पुणी वित्थ कल पेहामि // इत्युक्तोऽपि कुमारः स यदा न तत्र तिष्ठति // उत्तरीयं ततस्तस्य गृहीतं कामसेनया // 45 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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