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________________ इत्युक्त्वा तेन मित्रेण समं वेश्यागृहे ययौ // कामसेनाऽपि तं दृष्ट्वा पुनश्चैतन्यमागता // 623 // सातिहृष्टा सती तस्या मानमर्दनभोजनैः // सत्कारं सत्वरं सर्व चकार स्नेहपूर्वकम् // 624 // | गतकामज्वरा वेश्या चलितुं तं समुत्सुकम् // द्वितीये दिवसे प्राह कुमारं प्रति भावतः // 25 // कारणं किं समुद्दिश्य हे प्राणप्रिय यास्यसि // उक्तं तेनाह मन्यत्र गमिष्याम्यधुना प्रिये // 26 // तच्छ्रुत्वोक्तं तया स्वामिन् मदीयं शोभनं गृहम्-यत्त्वदीयं तदेवास्ति तेनात्र त्वं सुखं वस // 27 // कुमारोऽपि तदा तस्या दृष्ट्वा तीव्राग्रहं परं // दिनानि तत्र चत्वारि तस्थौ प्रेमपरिप्लुतः // 28 // ततोऽसौ छूतकाराणां स्थाने जगाम सत्वरम् // बहवो मिलिता आसंस्तत्र द्यूतपराः खलाः // 29 // | कुमारं तं च ते दृष्ट्वा कथयामासुरत्र किम् // मित्र त्वं छूत मुद्दिश्य ह्यागतोऽसि वदाधुन // 30 // सदयेनोमिति प्रोक्तं तदा पृष्टं पुनश्चतैः // परं भो मित्र ते पार्श्वे धनं क्वास्ति प्रदर्शय // 31 // Kg तेनोक्तं मे पणं खङ्गं स्वर्ण च भवतां पणम् // तैरुक्त मेवमेवास्तु द्यूतारंभो ततोऽभवत् // 32 // देवीदत्तवरस्याथ प्रसादात्तान् विजित्य सः॥ भूरि स्वर्ण ततः प्राप तैरेवं चिन्तितं तदा // 33 // अधुनामुं वयं सर्वे जेष्यामो द्यूतखेलने // परं बहुपणं कृत्वा प्रांते तैहरितं धनम् // 34 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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