________________ बाह शौर्यगजेन्द्रयन्त्रणमहालानो करौ चारुणांभोजे वर्म सुधांजनं नयनयोः केनेष सृष्टो युवा // 601 // ध्यायंतीति कुमारं तं पश्यति सा यथा तथा // कामज्वरोऽऽधिकं चास्या अपीडयत्तथा तथा // 602 // K कामज्वराकुला सैवं पपात मूञ्छिता सती // द्रुतं भूमौ विनिश्चेष्टा क्रमेण स्त्री बभूव च // 603 // तत्र स्थितैर्जनस्तस्या उत्थापनाय सत्वरम् // बहुपायाः कृताः सर्वे तेऽपि विकलतां गताः॥६०४॥ मृतेव नहि जागर्ति नचोत्तिष्ठति सा परम् / / तदोत्पाटय जनैः सर्वैः समानीता च तद्गृहे // 605 // Ka आकारितो द्रुतं वैद्यो ह्यकया भयभीतया // अतिवृद्धो महाबुद्धि श्चतुरो वैद्यकर्मणि // 606 // जरा चालंकरोतीह राजानं भिषजं गुरुम् // विडंबयति पण्यस्त्रीमलगायकसेवकान् // 6 // 7 // अथ स कामसेनाया दृष्ट्वा देहं जगाद हे // मातरस्याः शरीरं तु नीरोगमस्ति सांप्रतम् / / 608 // k कामज्वरं शरीरेऽस्या विलोक्यामि केवलम् // इत्युक्त्वा वैद्यराजः स पप्रच्छ मातरं प्रति // 609 // - हेमातरनया कोऽपि रूपसौभाग्यवान्नरः॥ दृष्टः किमधुना सा तमुवाचोमिति सूत्तरम् // 610 // वैद्येनोक्तमियं तर्हि नूनं कामज्वराकुला // दृष्ट्वा तं पुरुषं जाता ह्यन्यो रोगो न विद्यते // 611 // अतो मातः समं तेन कारयास्याः समागमम् // यथा सा पूर्ववदेहा द्रुतं सजीभविष्यति // 612 //