________________ स्वमनसि तदा सेयं चिंतयामास भूपतिः // अबाधितप्रचारोऽस्ति नूनं मंत्री ममालये // 56 // दंतिनालिंगिता दृष्टा कदाचिदपि मत्प्रिया // अनेन हेतुना तेन कथितमस्ति सांप्रतम् // 57 // अप्येतदविषये स्त्रीणां कामविह्यलचेतसाम् // कः संदेहो विचिंत्यैवं राजातिखेदमाप्तवान् // 58 // राजा तदादितस्तस्मिन् प्रसादविमुखोऽजनि // निषिद्धः स्वगृहे मन्त्रिप्रवेशोऽपि हि भूभृता // 59 // तदा स्वविमुखं दृष्ट्वा दंतिलोऽपि तथा नृपम् // हेतुना केन मत्तोऽयं पराङ्मुखो बभूव ह // 60 // INE नराधिपविरुद्धं किमपि नाचरितं मया // तथापि किमिदं जात मिति चिंतातुरोऽभवत् // 61 // अथैकदा राजकार्यार्थं समायान्तं नृपान्तिके // दंतिलं द्वारपालैस्तं रुद्धं दृष्ट्वा विहस्य सः // 6 // KE गोरंभः प्राह सर्वेषां निग्रहानुग्रहक्षमः // द्वारपाला अयं मन्त्री स्वयमेवास्ति दंतिलः // 6 // निषिद्धेऽस्मिन् सति स्थानात् कदाचिद् भवतामपि॥स्वाधिकाराद् बहिर्मद्वन् निष्काशनं भविष्यति 64 E अकुलीनोऽपि मूर्योऽपि भूपालं यो निषेवते // अपि सन्मानहीनोऽपि स हि सर्वत्र पूज्यते // 65 // KE इत्येवं मानसे कृत्वा विलक्ष्यास्यः स दंतिलः // वस्त्रयुग्मेन गोरंभं सत्कृत्याह शुभं वचः // 66 // भोभद्र त्वं तदा रोषान्नासीः निस्सारितो मया // अमात्यादिस्थले किंतु निविष्टत्वान्मया कृतम् // 6 //