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________________ एषकोऽपि नवीनोऽस्ति तत्तत्त्वं कथयिष्यति // करिष्यतीति किं तस्यै पप्रच्छस्ते जनास्तदा // 33 // सापि तं सदयं दृष्ट्वा कुमारं नवयौवनम् // नूनमेष मदोन्मत्तो वेश्यापक्षं करिष्यति॥ 34 // इति मत्वाऽवदद् वेश्या भो लोकाः श्रुयतां वचः // नवीनपुरुषस्यैव प्रमाणं वचनं मम // 35 // इत्युक्त्वा सा स्वचित्तेऽपि चिंतयति पुनः पुनः // एवंविधा नरा वेश्याऽनुरक्ता भवंति हि // 36 // | स्थविरो यदि कोऽपि स्याद् वैराग्यान्मदपक्षगः // ममैष न्यायकतॆव लाभदोऽतो भविष्यति // 37 // ततः सर्वैरपि लोके स्तदेवांगी कृतंवचः // तत्रोपावेशयित्त्वा तं विवादः कथितश्चतैः // 38 // सर्वैरपि मिलित्वोक्तं भोकुमार अथास्य त्वम् // वृत्तान्तस्य कुरु न्याय मित्युक्ते सदयोऽवदत् // 39 // भोलोका यदि युष्माभिर्मे न्यायकरणं मतम् // मद्धचो लंघनीयं न तैरपि स्वीकृतं तदा // 40 // कुमारः प्रथमं प्राह वेश्यायै त्वं तृतीयकम् // द्रव्याधं वा गृहीत्वैतद् विवादशमनं कुरु // 41 // तयोक्तं न गृहीष्यामि न्यूना मेकां कपर्दिकाम् // गृहीत्वा मद्धनं सर्व स्थानाद्यास्यामि नान्यथा॥४२॥ ततः प्राह कुमारोऽपि सोमदंतं प्रति क्रमात् // एषा वै राजमान्यत्वान्मन्यते न मयेरितम् // 43 // अतोऽवश्यं त्वया वेश्या नापमान्या नृपाश्रया // अन्यथैवंविधे कार्ये महापत्तिर्भविष्यति // 44 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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