________________ | अज्ञानं खलु कष्टं क्रोधादिन्योऽपि सर्वपापेभ्यः॥अर्थ हितमहितं वा न वेति येनाहतो लोकः // 10 // KE कुमारोक्तं समाकर्ण्य पूर्वोक्तं तेन चिंतितम् // पुनरपि कुमाराय तेन प्रोक्तं हितं वचः // 11 // Kजानीहि भो महाबुद्धे वच्म्यहं ते हितं वचः॥ यूतासक्तो हि मा भूयात् दृष्ट्वा मां कोऽपि सज्जनः // 12 // यो युतधातुवादादि संवेधै धन मिलति // स मषीकूर्चकै धाम धवलीकर्तु मिलति // 13 // सदयः प्राह भो मित्र सर्व सत्यं भवद्वचः // परं मम द्यूतेनैव बहुलाभो भविष्यति // 14 // Ka टुटः प्राह कुमारेन्द्र कथं त्वं खेलयिष्यसि // तव पाश्वे विना खड्गं किमपि दृश्यते न हि // 15 // कुमारः प्राह भोमित्र कौतुकं त्वं विलोकयन् // तत्र तिष्ठेः शुभं सर्व क्षणमात्रात् भविष्यति // 16 // तयो परस्परं प्रीति र्जातातीव सुभाषणात् // ततः परं समुत्थाय द्वावपि जग्मतुः पुरम् // 17 // Ka एकत्र सूर्यप्रासादे लोककलकलारवम् // कुमारः पृच्छति श्रुत्वा भोमित्र श्रुयतेऽत्र किम् // 18 // सोऽवदन् मित्र ते चित्ते यद्यस्ति कौतुकं महत् // त्वं तदैतच्च वृत्तांतं समाकर्णय सत्वरम् // 19 // देताकश्रेष्ठिनः पुत्रः सोमदंताभिधः पुरे // वसति कामसेना च वेश्यापि सुमनोहरा // 20 // | अतिरूपवती वेश्या राज्ञा चातीव मानिता // वीजयति नृपं गत्वा चामराणि सभासु सा // 21 //