________________ चरित्रम् श्री सदैववत्सSE इत्यादि लौकिकं श्रुत्वा विलोकनसमुत्सुकः // स्वर्णकोटियुतोऽत्रागां साद्धं पंचशतै गजैः // 98 // इतकारैः परं कृत्वा कपटं सर्वमद्धनम् // गृहीतं हस्तनासादि प्रांते शस्त्राणि चापि मे // 99 // नगरेऽस्मिन् महाधुर्तेः कपटनाटकान्वितैः // विदेशिनो जनाः सर्वे मुष्यंते क्षणमात्रतः // 500 // महाधूर्तस्य कस्यापि ह्यागंतुकजनस्य च // कापि शक्तिर्महाबुद्धे चलति नहि तत्पुरः // 1 // Ka तृणच्छन्ने महाकू मधुलिप्तै महासिभिः // कैतवैश्च मुखे सौम्यै दुर्दशां को न नीयते // 2 // इत्येवं भो कुमारेन्द्र राजपुत्रोऽपि बुद्धिमान् // अत्रागत्य महादुःखे पतितोऽस्मिहि पश्य माम् // 3 // यूतेन धन मिच्छंति मान मिच्छंति सेवया // भिक्षया भोग मिच्छति ते दैवेन विडबिताः // 4 // अथाहं किं च भो भद्र व्यंगितोऽतिविडंबितः // पश्चान्मम पुरे गंतुं नोत्सहे लज्जयान्वितः॥ 5 // श्रुत्वावदत् कुमारोपि द्यूतकारैः प्रयोजनम् // अस्ति तद् ये न जानन्ति ते नरा कुशला नहि // 6 // Ke अज्ञाताततत्वस्य भवत्येव पराभवः // परं तद्द्यूतमेवास्ति सर्वाभिष्टप्रदं मम // 7 // Kज्ञानिनोऽपि नरा नित्यं वर्णयंति पुन पुनः // अस्त्यात्मसुखं सर्व द्यूतरसोपमं भुवि // 8 // - यद् दाये यूतकारस्य यत् प्रियायां वियोगिनः // यद्राधावेधिनो लक्ष्ये तद्ध्यानं मे त्वयि प्रभो // 9 //