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________________ तेनाहं दृष्टपूर्वो न तथापि हितकाम्यया // मांगल्ये मे महाभक्तिं विदधाति ह्ययं पुमान् // 88 // पद्माकरं दिनकरो विकचीकरोति चन्द्रो विकाशयति कैरवचक्रवालम्॥ नान्यर्थितो जलधरोऽपि जलं ददाति संतः स्वयं परहितेषु कृताभियोगाः // 89 // - लुटकोऽपि स्वचित्तेऽथ चिंतयति महामतिः // नृपादिकुलसंभूतो यद्यष संभविष्यति // 10 // | नृपार्हपुष्पपत्रेषु क्षेप्स्यति स्वकरं तदा // अन्यथा खाद्यवस्तुषु लोलुपो हि भविष्यति // 11 // | तन्मध्यात् केवलं पुष्पं ताम्बूलेन समन्वितम् // गृहीतं च कुमारेण स्वशुभशकुनाय वै // 92 // सजना ये भुवि प्रोक्ताः कस्यापि ते जनस्य च // कदाप्यभ्यर्थनां नैव कुवैति विफलां यतः // 13 // निःशेषशकुनं नत्वा कुमारेण समर्पितम् // निश्चितं लुटकेनापि ह्ययं राजकुलोद्भवः // 9 // अथ पृष्टं कुमारेण कोऽसि त्वं भो महाजन // पवित्रीकुरु कर्णो मे वृत्तांतकथनेन ते // 15 // सुरसुंदरनामास्मि सिंहलद्वीपभूपतेः // सुतोऽहं भो महाराज तदैवं टुंटको वदत् // 16 // योगिनीनामिदं स्थानं वीरादीनां तथैव च // आस्ति पुरं महाराज कौतुकैः बहुनिर्युतम् // 97 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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