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________________ श्री सदेववत्स चरित्रम् Ka बुंछितवान् स्वहस्ताभ्या मश्रुपातं यदा तदा // स्नेहतो धौतवान्नायं स्वहस्तौ कज्जलाविलौ॥७६ // तेनानुमीयते चास्य पान्थस्य स्वप्रियां प्रति॥ वर्तते सुमहान् स्नेहो धन्या यत्पतिरीदृशः / / 77 // | वार्तालाप मथैतासां श्रुत्वाऽतीव चमत्कृतः॥ स्वहृदि चिंतयत्येवं कुमारो हर्षमाश्रितः // 78 // | अहो एतत्पूरस्थाना मंगनानां विशेषतः // चातुर्य वर्तते कीदगिति कृत्वा चचाल ह // 79 // पुरं प्रविशतोऽस्यैकष्टुंटुकश्छिन्ननासिकः // सन्मुखोऽभूत् कुमारस्तं दृष्ट्वा चिंतातुरोऽभवत् // 8 // प्रथमे कवले जातं मक्षिकापातवन्मम // अत्रापशकुनं मे भूत् प्रवेशे प्रथमे पुरे // 1 // वलित्वाऽसौ ततः पश्चात् निकटस्थानवर्तिनि // गत्वा च समुपाविष्टो हेरम्बदेवमंदिरे // 8 // Rs तावता तेन टुंटेन नरेण चिंतितं मम धिक् कुरूपं हि लोकाना मपशकुनकारणम् // 83 // अथाहमस्य पांथस्य कथंचिच्छकुनै शुभम् // कुवेऽत्रेति विचिंत्यासौ पुष्पपत्रफलादिभिः // 4 // जगाम सम्मुखं तस्य पात्रं भृत्वा सुवस्तुभिः // तत्पात्रं तत्पुरो मुक्त्वा सोवाच मधुरं वचः // 5 // सन् शुभशकुनायैतत् समानीतं मया मुदा // अतस्त्वं शकुनं नत्वा हर्षादिदं गृहाण च // 86 // विचारितं कुमारेण ह्येषकोऽपि सुबुद्धिमान् // नूनमस्ति सदाचारी महाकुलसमुद्भवः // 87 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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