________________ CIII 4. IBHI AISFlla THII - III NISHIIC ISITE मम भर्जुनलस्य त्वं व्यलीकेन च यत् पुनः / हा प्राप्तासि कथं देवि ! दमयन्ति ! दशामिमाम् // 13 // त्यज त्यज भयं भीरु ! भृत्ये संनिहिते मयि / अतः परं हि संबंहि भूयः किं करवाणि ते? // 14 // मार्जयामि दृशोर्बाष्पं वपुः प्रक्षालयामि ते / प्रसीद मृदुभिवृत्ति विधेहि विविधैः फलैः // 15 // इति तास्तस्य निःशङ्काः प्रत्यासन्नभ्रमा गिरः / परैरप्रत्यभिज्ञाता विप्राभ्यामभिजज्ञिरे . // 16 // किरातकृतवैदर्भीकेशामर्शक्षणे पुनः / शोकेनैव परे रुद्धा हीरोपाभ्यां स केवलम् / // 17 // व्यतीतवृत्तचित्रेऽस्मिन् कुब्ज! कोऽयं भ्रमस्तव ? / इति जग्राह तं राजा विनितासिमुद्यतम् // 18 // गिरिगह्वरमध्यस्थां दुस्तरे तपसि स्थिताम् / सहसा स प्रियां प्रेक्ष्य रुरोद सदसि स्थितः // 19 // गृहे मातृष्वसुर्दास्यं दमयन्त्या दधानया / नलस्य विदधे चित्ते कुब्जत्वं युक्तमात्मनः // 20 // पुनः पितृगृहे देवीं सुस्थितां तस्य पश्यतः / इन्द्रसेनगत प्रेम सहस्रगुणतां दधे . // 21 // इत्थं सुदेवशाण्डिल्यौ तत्रोद्गीर्णप्रघट्टको / दत्तप्रसाधनौ राज्ञा निन्ये कुब्जःपुनर्गृहम // 22 // स्वयं स्थालीषु निक्षिप्य भक्षजातं चतुर्विधम् / चक्रे रसवती रम्यां सूर्यपाका तयोः कृते // 23 // न धूमध्यामले दृष्टी न मषीमलिनौ करौ / न श्रमाम्बुजडं गात्रं न फूत्कारक्रमक्लमः // 24 // स्फारत्वं सुकुमारत्वं शुचितातिसुगन्धता / विच्छित्तिरविलम्बश्च देशकालादिरूपता // 25 // इत्यलौकिकमुद्दाम सूपकारस्य तस्य तौ / विप्रो रसवतीकर्म तदपूर्वमपश्यताम् // 26 // युग्मम् // IIIASII III AISIIIsile