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________________ स्कन्ध // 13 // // 14 // // 15 // नलशोधने तिलकमञ्जर्या उदाहरणम्। सर्गः३ * // 148 // II RISHIATIGATIAHINIATEK धूर्तः सिंहलकः कान्त्यां नरदत्ता गृहाङ्गणे / द्यूते हारितसर्वस्वस्तन्मृत्ति भक्तमुद्यतः विशूकं पापिनं देवी कितवं तमबोधयत् / स्वयं पञ्चशतद्रव्यमूल्यां गाथां समर्प्य सा मूर्खस्तद्विक्रयाकाली स भ्रमन् पत्रिकाकरः। अमुच्यत मृषा सर्वैः स गाथार्थावधीरणम् देवदत्तात्मजो विद्वान् तां गाथां मन्मथाभिधः / यथामूल्येन जग्राह गाथा सा चेयमीदृशी “यदत्र लिखितं धात्रा न तत्परिणतिवृथा / इति मत्वा ध्रुवं धीरा विधुरेऽपि न कातराः" स धृथार्थव्ययक्रोधात् पित्रा निर्वासितो गृहात् / पुरान् बहिः सरस्तीरे तस्थौ देशान्तरोन्मुखः तत्र नक्तं मृगभ्रान्त्या तं व्याधशरताडितम् / रक्तगन्धेन भारुंडो वार्धिद्वीपे गृहीतवान् तत्र मुक्तो दयाण लब्धसञ्ज्ञः स पक्षिणा / ददर्श केवलं व्योम वारिधिं च दुरुत्तरम् स्मरन् गाथार्थमेवैकमेकाकी स वणिग्वरः / नालिकेरादिभिर्वृत्ति वितन्वन्ननयद् दिनान् प्रवालमौक्तिकादीनां विष्वक कूटानकल्पयत् / स्वर्णमिश्रेष्टिकायुग्मान्याख्यागर्भाणि चाकरोत अथ सांयात्रिकेशस्य भृत्याः शाल्वस्य वारिणे / संस्थाप्य जलधौ पोतं तत्र द्वीपे समाययुः मर्मज्ञः सोऽपि तैः पृष्टः स्वनिस्तारं विचारयन् / पोतेशघटनापूर्व वार्याख्यातुममन्यत ततः पोतपतिः प्रीत्या तस्य सिद्धप्रयोजनः / कूपे तद्धनलोभान्धस्तं तटस्थमपातयत् तम्य सर्वस्वमादाय सांयात्रिकपतौ गते / स कूपपतितोऽप्यन्तर्गाथार्थंकपरोऽभवत् / // 17 // // 18 // // 19 // // 20 // // 21 // // 22 // // 23 // // 24 // // 25 // . // 26 // . // 148 //
SR No.600422
Book TitleNalayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyadevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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