________________ BISHI II AISHI AII IIite * ततस्तया कृतां मूर्ति मन्त्रन्यासदृढीकृताम् / समर्पयन् मुनिर्वाग्मी स जगाद महासतीम् . ' // 7 // त्वमिमा प्रतिमा शान्तराचाम्लव्रततत्परा / तावदाराधयागत्य न यावत् कोऽपि याचते // 8 // शान्तिप्रभावादिह शान्तसत्वे गिरौ वसन्त्यास्तव राजपुत्रि!। न वाङ्मनःकायविकारकारी संपत्स्यते विघ्नकणोऽपि कश्चित् // 9 // तस्येदृशीं चेतसि बद्धमूलां विधाय शिक्षामपनीतदुःखाम् / उवाच देवी प्रणिपत्य हृष्टा दिल्या कृतार्था भगवन् ! कृतास्मि // 10 // अयं स च त्वं च मुनीन्द्र ! सर्वे क्षमाभृतां मुख्यतमास्त्रयोऽपि / त्वदाज्ञया तद्विरहे तदत्र स्थास्यामि शान्ति प्रभुमर्चयन्ती // 11 // इत्युक्तवन्तीं मुनयस्ततस्तां आपृच्छय शीघ्रं गगनेन जग्मुः। सा तत्र तस्थौ गिरिकन्दरायामुदारशीलाभिहितव्रता च // 12 // इतिश्रीमाणिक्यदेवसूरिकृते नलायने पञ्चमे स्कन्धे एकोनविंशतितमः सर्गः // 19 // BHISHIFIERIFII-IISHIFile