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________________ स्कन्धे सर्गः१७ // 13 // नूनं निरुपमं प्रेम परिणामे न शोभनम् / यतो विघटमानेन द्वयं तेन विनश्यति प्रायो देव्याः कलावत्या वैदग्ध्यमधुरा गिरः / इदं राजापि जानाति तत्कोऽयमपरो विधिः धिग् धिक् परिजनं मुर्ख धिग धिक् सारथिमीदृशम् / न किं हि क्रियते भर्तुविरुद्धं बुद्धिवश्चितम् यद् वा न कस्यचिद् दोषो दैवस्यैकस्य दूषणम् / अभव्यं भव्यलोकेऽपि यस्य लज्जा न कुर्वतः इत्थं भृशमनाथानां जनानां जल्पतां शुचा / वसुभूतिः समागत्य मन्त्री राजानमब्रवीत्। देव ! प्रसीद बुध्यस्व नीतिदृष्ट्या विलोकय / कृत्वैकमपरित्रातमपरं मा पुनः कुरु नूनं सर्वस्वनाशेऽपि दुःखावेशेऽपि दारुणे / कथञ्चिद् नीतिकाराणां प्राणत्यागो न संमतः त्रिवर्गसाधनं राज्यं तद् मृतानां कुतः पुनः / यत्नाद् जीवं ततो रक्षेद् जीवद्भिः सर्वमाप्यते त्वयि स्वर्ग गते स्वामिन् ! कथं देवी निवर्त्तते / / इदं तु सकलं राष्ट्रं मूलाद् निम्नन्ति शत्रवः विमुश्च मरणश्रद्धां धैर्य भज शुचं त्यज / अद्याप्यापन्नसत्वाया देव्याः प्राप्तौ यतस्व च अन्तरं न किमप्यस्ति जीवन्ती सा भविष्यति / न हि प्राणहरं प्रायः सद्यस्तादृक् कदर्थनम् प्रियाप्राप्तौ कुरु प्रज्ञां मुधा किं मरणेन ते / सहसा जीवितत्यागः पशुधर्मो न पौरुषम इति सचिववचो विचार्य राजा त्वरिततरं दयिताविलोकनाय / पुरजनबलवाहनैः समग्रैगिरिगहनानि विगाहितुं प्रतस्थे . // 27 // // 28 // // 29 // // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // // 34 // // 35 // // 36 // // 37 // // 38 // दमयन्त्या आश्वसनाय भास्करशिष्येण कथिता कलावत्याः कथा॥ // 39 // // 133 //
SR No.600422
Book TitleNalayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyadevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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