________________ OFICISSIA IIIIII BIFII ISIS कथं वर्णयितुं योग्यो युष्माकं स नराधमः / रत्नचौरः सभावरी त्वर्थहानिकरो नलः // 48 // तदद्य रिपुकल्पाग्नौ क्रुद्धे सति कलौ मयि / ज्ञास्यते खलु पापात्मा स स्थास्यति सुखं यदि . // 49 // अद्यप्रभृति मे वैरं नलेन सह निश्चलम् / नित्यं जगन्ति गायन्तु कृत्वा पटहघोषणम् // 50 // अपि तं दश दिक्पालाः पितरो लिङ्गिनोऽथवा / सतीत्वं दमयन्त्या वा यः कश्चिदपि रक्षतु // 51 // यदि तं हृतसर्वस्वं राज्यभ्रष्टं क्षुधातुरम् / विद्वेष्यं सर्वलोकानां कातरं धैर्यवर्जितम् // 52 // दुबेहेति परिज्ञाय स्वयं त्यक्त्वा निजप्रियाम् / वनं वनेन सीदन्तं रुदन्तं भ्रमयामि न // 53 // तदा मम न दातव्यं सभायां पुनरासनम् / न च भूयोऽपि कर्त्तव्या लोकयात्रा मया सह // 54 // त्रिभिर्विशेषकम् / इत्थमुक्तवतस्तस्य कोपारुणितचक्षुषः। प्रशमं सामभिर्वाक्यैः कर्तुमारभिरे सुराः // 55 // त्यज त्यज कले! कोपं प्रसन्न हृदयं कुरु / विषमं ब्रजसि स्वैरं कथमुन्मार्गमन्धवत् ? // 56 // गदि तत्र वर्ग प्राप्ताः स्त्रयम्बरमहोत्सवे / अस्मिन्निमिन एवायं तत्कोधस्तव किं नले? // 57 // इह स्त्री वा मनुष्यो वा धनवान् निर्धनोऽथवा / युवा वा जरठो वाऽस्तु सर्वस्याचरणं महत् // 58 // आचारवांश्च सर्वोऽपि देवानामपि दैवतम् / यस्तत्परिचयं कुर्यात् स परं पुण्यवान् जनः // 59 // कर्पूरेऽपि हि कालुष्यं चण्डत्वं चन्द्रमस्यपि / सत्संसर्गेऽपि शाठ्यं च विचिन्तयति दुर्जनः // 6 // यस्य सज्जनयात्राऽस्ति गुणरागश्च निश्चलः / स विभुः स सुखी लोके परः पामर एव हि // 61 // IIAHIATI AISHINI AISITE