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________________ विक्रमाक्रान्तदिक्चक्रः क्षमाशको विक्रमाभिधः / नृपः / कृपापवित्रोऽभूत्तत्र क्षत्रशिरोमणिः // 4 // सुमित्रा अ०-ते नगरमां पराक्रमथी जीतेल छे दिशाओनो समूह जेणे, पृथ्वीपर इन्द्रसमान, अने क्षत्रीओमां शिरोमणि विक्रमनामे राजा इतो. 18 चरित्रम् तन्मन्त्रीशो वसुर्जज्ञे यबुद्धिभरनीरजे / राज्यलक्ष्मीः सुखं तस्थौ विकाशाढ्ये दिवानिशम् // 5 // // 2 // अ०-वसुनामे तेनो मंत्रीश्वर हतो के जेनी बुद्धिना समूहरूपी विकस्वर कमलपर राज्यलक्ष्मी हमेशां सुखेथी रहेती हती.॥५॥ जिनदासाभिधः श्रेष्ठी तस्ध पृथ्वीपतेः प्रियः बभूव तीर्थकृद्धर्मधौरेयः श्रेयसां निधिः // 6 // अ० ते राजाने व्हालो तथा जिनधर्ममां अग्रेसर, अने कल्याणना भंडारसरखो जिनदासनामनो शेठ हतो. // 6 // है तदर्जितैरसंख्यातैः स्वर्णरत्नैरपि ध्रुवम् / निष्पौद्यते क्षितौ भेरुरोहणावपरावपि // 7 // अ०-तेणे मेळवेलां असंख्यातां स्वर्ण अने रनोथी पण खरेखर पृथ्वीपर बीजा मेरु अने रोहणाचल पण बनावी शकाय. // 7 // यक्षराजो धनाध्यक्ष इत्येव ख्यातिमहति / धनदो जिनदासस्तु स स्तुतोऽर्थिगणैरपि // 8 // __ अ०-कुबेर तो धनना मालिकपणानीज प्रख्यातिने लायक छे, अने आ जिनदास तो धन आपनारो छे, एम याचकोना समूहो तेनी स्तुति करता हता. // 8 // धनस्य सार्थवाहस्य सुतां काशिनिवासिनः। ख्यातां रत्नवतीं नाम्ना व्वहारी युव्यवाह स // 9 // SRAलसर
SR No.600419
Book TitleSumitra Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhshil Gani
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1934
Total Pages22
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size2 MB
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