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________________ सुमित्रा चरित्रम // 3 // GEOG अ-काशीनगरीना रहेवासी धननामना सार्थवाहनी रत्रवती नामनी प्रख्यात पुत्रीने ते व्यापारी परण्यो हतो. // 9 // जिनदासस्य विश्वासपात्रं लक्ष्मीधराभिधः / विप्रो बभूव भ्रातेव चरमः परमः सुहृत // 10 // अ०-ते जिनदासनो लक्ष्मीधरनामनो ब्राह्मण विश्वासु अने न्हाना भाइ सरखो परम मित्र हतो. // 10 // न मन्त्री न कलत्रं न पुत्रो धात्रीपतेः पुनः / नान्य किचिच्च तस्याभूजिनदास इव प्रियम् // 11 // अ.--वळी ते राजाने ते जिनदासनीपेठे नही मंत्री, नही स्त्री, नही पुत्र, के वीजु कंइ पण प्रिय होतं. // 11 // मित्रे नृपः कदाप्यत्र मन्त्रितामपि दास्यति / राजमन्त्रीति तं हन्तु विरुद्धं विदधे मनः // 12 // अ० *राजा कोइ पण दिवसे (पोताना) आ मित्रने मंत्रीनी पदवी पण आपी देशे, एम विचारी ते राजानो मंत्री ते जिनदासने | मारवाने विरुद्ध विचार करतो हतो. // 12 // जिनदासस्तु दाक्ष्येण परचित्तोपतक्षकः / चक्षुर्वचोविकारेण तं विरुद्धमबुध्यत // 13 // अ०-चतुराइथी परना हृदयने ओळखनारा ते जिनदासे तो आंखोना तथा वचनोना विकारथी ते मंत्रीने शत्रु तरीके जाणी लीधो. तसो भृपालमापृच्छय तीर्थयात्रापदेशतः / पत्नी रत्नवतीं प्रेषीदसौ पितृगृहं प्रति // 14 // अ०-पछी राजानी रजा लेइने तीर्थयात्राना मिपथी तेणे पोतानी पत्नी रत्रवतीने (तेणीना) पिताने घेर मोकली दीधी. // 14 //
SR No.600419
Book TitleSumitra Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhshil Gani
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1934
Total Pages22
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size2 MB
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