________________ 15 अथानीतो निजावासे मालिकेन स्तनन्धयः / शारत्रितयदेशीयः पाल्यमानो बभूव सः॥४६॥ र अन्येबू रचयामास पुष्पमालां स मालिकः। खपल्या उपरोधेन नृपप्रीतिकृते कृती // 47 // ततोऽसौ दर्शयामास मालिन्यै पुष्पमालिकाम् / 'भवन्ति स्त्रीप्रधाना हि प्रायोऽमी मालिकादयः'४८ क्षिप्त्वा पुष्पकरण्डे च दाम दास्याः समर्प्य तत् / कट्यामारोप्य सा सुतं खयं राजकुले गता // 49 // प्रणम्य नृपमादाय दाम दक्षिणपाणिना / विस्पष्टाक्षरमाचख्यौ देवेदमवलग्यताम् // 50 // बलान्मनस्तुरङ्गस्य वलामिव नियन्त्रणे / ज्यामिवाऽनङ्गचापस्य हर्षाश्रुलहरीमिव // 51 // दोलामिव मधोर्लक्ष्म्या दृग्मृग्या बन्धनाय च ।वागुरामिव तां मालामद्राक्षीनृपतिश्विरम् ॥५२॥युग्मम् / / सभाजनमथैक्षिष्ट दृष्टिः कस्सेह किंविधा। 'भाव्यं हि भूभृता नैव भोगिनेवैकदृष्टिना' // 53 // है भृङ्गीष्विव निविष्टासु सर्वेषामिह दृष्टिषु / गाढसंमर्दभीतेव नाऽगादृष्टिः पुरोधसः // 54 // अचिन्तयञ्च किमयं निरपत्य इव द्विजः / निरीक्षते पुत्रमिमं ग्रैवेयकविभूषितम् // 55 // गृहीत्वाऽथ नृपः पुष्पस्रजं कण्ठे दधौ पुनः / ददौ तस्यै नृपः प्रीतः सहस्रं षोडशाधिकम् // 56 // तां विसृज्य नृपःप्रोचे द्विजं, दाम विहाय तत् / रतिं चक्रे भवदृष्टिालिनीतनये कथम् ? // 57 // सोऽवदद् भाविभूपालसेवाहेवाकिनीदृशम् / विसस्मार महाराज ! सर्व दृष्टिर्ममाऽपरम् // 58 // 1 वसन्तस्य /