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________________ अघटकु. // 9 // SURIRURTARISHI SCAUSAHA इत्याकर्ण्य गिरं गाढमुद्राघातसोदराम् / राजा तत्याज ताम्बूलं कीलितः शोकशङ्कुना // 213 // अथ सौधमधिष्ठाय दध्यौ विश्वम्भराधिपः / अहो देवस्य चरितमवाग्मनसगोचरम् // 214 // सुघटान्न घटयति घटयत्यघटानपि / प्रमाणं दैवमेवातश्चिन्तितं न पुनर्नृणाम् // 215 // 6 कुमारो मृत्युना निन्ये रक्ष्यमाणोऽपि यत्नतः।दासेरो हन्यमानोऽपिलक्ष्मी लेभेऽधिकाधिकाम् // 216 // है इत्थं सशोको निर्गम्य निशां कृत्वा सतक्रियाम। वसधेशो द्वितीयेऽहि जजल्पेति नभस्थितिः // 217 // हंहो ! शृणुत मत्पापं पुण्यमस्याघटस्य च / ज्ञानं च ज्ञानगर्भस्य मर्त्यलोकेऽद्भुतत्रयम् // 218 // 4 जातमात्रेऽप्यदृष्टेऽपि जन्मश्रवणमात्रतः। ग्रहीष्यत्येष ते राज्यं पुरोधा इत्यचीकथत् // 219 // ततो नाऽजीगणं धर्म निजं नाऽजीगणं कुलम् / अचीकरमहं तच नाऽन्त्यजोऽपि करोति यत् // 220 // 2 एष वाल्यादपि मया मारणाय पुनः पुनः / आरब्धोऽपि परं पुण्यैर्निजैरेव हि रक्षितः॥२२१॥ पापं हि प्रकटं भव्यं प्रकाश्येति निजं पुरः। सभ्यानां, तानथापृच्छयाऽघटं पुण्योत्कटं नृपः // 222 // अभिषिच्य निजे राज्ये क्षमयित्वाऽखिलं जनम् / जैनी दीक्षां गुरोः पार्थे खात्मसिद्ध्यै प्रपेदिवान् // // 223 // युग्मम् / ततोऽघटनरेन्द्रेण खमाता मालिकौ च तौ। देवधरश्चाऽवधकाः सर्वे राज्ययुजः कृताः // 224 // 1 दासीपुत्रः-अघटः / 2 चण्डालः /
SR No.600405
Book TitleAghatkumar Charitram Pramade Nirdravyaviprakatha Punyaprabhave Siddhadutta Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManchand Velchand
PublisherManchand Velchand
Publication Year1917
Total Pages40
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size3 MB
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