________________ PALUSOGGESKOSHUSHUSHA द इति ब्रुवन्नवातीर्य तन्नेपथ्यश्चचाल सः / गृहीत्वा बलिपुष्पाद्यं खस्थाने स्थाप्य तं ततः // 20 // यावत् पूजयितुं देव्यालयद्वारं विवेश सः / तावदाकृष्टकोदण्डो घातको व्यमुचच्छरम् // 201 // ततो विक्रमसिंहोऽपि बाणभिन्नोऽपतद्भुवि / तत्क्षणादेव पृच्चके जनैर्देवीगृहस्थितैः॥ 202 // जामाता वसुधाभर्तुः केनापि निहतोऽधुना / ब्रुवन्त इति योद्धारः सम्भ्रमेण दधाविरे // 203 // तदाकर्ण्य क्षणं भूपो योगीव सुखभागभूत् / ब्रुवन् किमिदमुत्तस्थौ परं लोकानुवृत्तये // 204 // यावद्राजपथं राजा जगाम सपरिच्छदः / अघटोऽप्यागमत्तावदाकृष्टासिर्बुवन्निदम् // 205 // तेन जागरितः सिंहो मृत्युना स कटाक्षितः / येनाऽघानि कुमारोऽयं छलघातेन पापिना // 206 // है वदन्निति पुरो दृष्ट्वाऽघटं संमुखमागतम् / किमेतदिति पप्रच्छ विच्छायवदनच्छविः // 207 // अघटः माह देवाऽहं गच्छन् गोत्रेश्वरीगृहम् / अनुयुक्तः कुमारेण यथातथमचीकथम् // 208 // ततोऽभाणि कुमारेण तिष्ठ त्वं यास्यते मया / अदृष्टपूर्वी तन्मार्ग गमिष्यसि कथं निशि ? // 209 // इत्युक्त्वा मम नेपथ्यमुपादाय बलादपि / कालपाशैरिवाकृष्टः कुमारो देव ! निर्ययौ // 210 // ततः कुमारदृश्वानः क्षोणिराजं व्यजिज्ञपन् / अनवलगको जज्ञे कुमारो देव ! सम्प्रति // 211 // कृत्वा प्रसादं तत्सौधे देव! पादोऽवधार्यताम ।राजानो येन नेक्षन्ते मृताननममङ्गलम् // 212 // 1 स्थापयित्वा / 2 पृष्टः /