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________________ बालकहा सिरिसिरि // 25 // जातं करेइ मंती, गलिअंगुलिनामओ दुयं ताव।। नरवर पुरओ ठाउं, एवं भणिउं समाढत्तो // 122 // सामिय ! अम्हाण पहू, उंबरनामेण राणओ एसो। सव्वत्थवि मन्निज्जइ, गरुएहिं दाणमाणेहिं // 123 // तेणऽम्हाणं घणकणय चीरपमहेहिं कीरइ न किंपि। एतस्स पसायेणं, अम्हे सव्वेवि अइसुहिणो // 124 // कृतवान् // 122 // हे स्वामिन् ? एषोऽस्माकं प्रभुः-स्वामी उम्बरनामा राजा सर्वत्रापि गुरुकैर्महद्भिर्दानमानै र्मान्यते-नृपादिभिः सक्रियते इत्यर्थः॥ 123 // तेन कारणेन अस्माभिधनकनकचीरप्रमुखः किमपि न क्रियते, धनस्वर्णवस्त्रादिभिरस्माकं किमपि कार्य नास्तीत्यर्थः एतस्य उम्बरराजस्य प्रसादेन वयं सर्वेऽप्यतिशयेन सुखिनः स्मः // 124 // १२२-मंतीति मन्त्रिन शब्दे " अन्त्य व्यजनस्य” 1111 // इति हैमसूत्रेण अन्त्य नकारस्य लोपे "अक्लीबे सौ" 3 / 19 / / इत्यनेन दीर्घत्वे रूपमवसेयम् / १२४-अत्र तेषां सुखित्वे केवलमुम्बरराजप्रसन्नताया हेतुत्वकथनात् काव्यलिङ्गमलङ्कारः / उम्बरराजस्य किमपि माहात्म्यमभिव्यज्यते / / ॐॐॐॐॐ // 25 //
SR No.600403
Book TitleSirisiriwal Kaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri, Bhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1963
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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