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________________ सिरिसिरि // 14 // वालकहा तह मयणसुंदरीवि हु, एया उ कलाओलील मित्तेण / सिक्खेइ विमलपन्ना, धन्ना विणएण संपन्ना // 31 // जिणमयनिउणेणज्झावएण, सा मयणसुंदरीवाला। तह सिक्वविया जह जिणमयंमि कुसलत्तणं पत्ता // 62 // एगा सत्ता दुविहो नओ य कालत्तयं गइचउकं / पंचेव अस्थिकाया, दबछक्कं च सत्त नया // 63 // सा सुरसुन्दरी मिथ्याद्रष्टिः उत्कृष्ट--दर्पा च आसीत , मिथ्यादृष्टिर्यस्याः सा उत्कृष्टो दर्पो मानो यस्याः सेतिसमासः॥६०॥ तथा मदनसुन्दरी अपि एताः प्रागुक्ता लेखनाद्या लीलामात्रेण शिक्षति, कीदृशी मदनसुन्दरी ? विमला निर्मला प्रज्ञा बुद्धिर्यस्याः सा विमल प्रज्ञा, तथा धन्या धर्मधनं लब्धी तथा विनयेन सम्पन्ना युक्ता // 6 // जिनमतविषये निपुणेन अध्यापकेन पाठकेन सा मदनसुन्दरीकन्या तथा शिक्षिता-शिक्षा ग्राहिता यथा जिनमते कुशलत्वं प्राप्ता // 62 // सतो भावः सत्ताऽस्तित्वमित्यर्थः, सा सर्वेष्वपिपदार्थेषु एकैव वर्तते, च-पुनर्द्विविधो नयः द्रव्यपर्यायादिस्वरूपः, तथा कालत्रयं गतिचतुष्कं पञ्चैवास्तिकाया-धर्माधर्माकाशपुद्गलजीवस्वरूपाः सन्ति, च-पुन द्रव्याणां धर्मास्तिकायादीनां कालद्रव्ययुक्तानां पटकमस्ति, तथा नैगमाद्याः सप्त नयाः सन्ति // 63 // // 14 //
SR No.600403
Book TitleSirisiriwal Kaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri, Bhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1963
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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