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________________ सिरिसिरि बालकहा सा नरवरस्स धूया विसेसओ तत्थ भत्तिसंजत्ता। अट्ठपयारं पूयं करेइ निचं तिसंझासु // 495 // अन्नदिणे विहिनिउणा सा नरवरनंदिणी सपरिवारा / कयविहिवित्थरपूया भावजुया वंदए देवे।। 496 // ताव नरिंदोवि तहिं पत्तो पूयाविहिं पलोयंतो। हरिसेण पुलइअंगो एवं चिंतेइ हिययंमि // 497 // P पूजयति ध्यायति च // 494 // सा प्रागुक्ता मदनमषानाम्नी नरवरस्य-राज्ञः पुत्री विशेषतो भक्तिसंयुक्ता | सती तत्र-जिनगृहे त्रिसन्ध्यासु नित्य अष्टविधां पूजां करोति // 495 // अन्यस्मिन् दिने विधौ-पूजाविधौ निपुणा-चतुरा सा नरवरस्य नन्दिनी-पुत्री परिवारेण सह वर्तते इति सपरिवारा तथाविधेविस्तरो विधिविस्तरः कृता विधिविस्तरेण पूजा यया सा कृत पुनर्भावेन युता एवंविधा सती देवान् वन्दते-देववन्दनं करोतीत्यर्थः // 496 // तावन्नरेन्द्रोऽपि पूजाविधि प्रलोकयन्-प्रकर्षेण विलोकयन् तत्र-जिनगृहे प्राप्तः विशिष्ट पूजादर्शनात् हर्षेण पुलकितं-रोमोद्गमयुक्तं अङ्गं यस्य स ईदृशः सन् हृदये ४९५-पष्टम् / ४२६-अत्र पूर्वाद्ध णकारस्यासदावृत्त्या वृत्तानुपासोऽलङ्कारः। ४९७-अत्र राज्ञोऽ हर्षरोमाञ्चे विधिपूर्वकतनयाकृतदेवार्चन विलोकनस्य कारणतया काव्यलिगमलङ्कारः।
SR No.600403
Book TitleSirisiriwal Kaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri, Bhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1963
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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