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________________ सिरिसिरि // 62 // ASSESS बालकदा UPOSTOSO अन्नदिणे तस्सावासपाससेरीइ निग्गओ राया। पिक्खइ गवक्खसंठिअकुमरं मयणाइ संजुत्तं // 318 // तो सहसा नरनाहो, मयणं दट्टण चिंतए एवं / मयणाइ मयणवसगाइ मह कुलं मइलियं नृणं // 319 // इकं मए अजुत्तं, कोवंधण तया कयं बी। कामंधाइ इमीए विहियं ही ही अजुत्तयरं // 320 // य आवासस्तस्य पाश्व या सेरी-मार्गविशेषस्तस्यां राजा निर्गतः, तत्र च मदनसुन्दर्या संयुक्तं गवाक्षे सं-सम्यक प्रकारेण स्थितं कुमारं-श्रीपालं प्रेक्षते-पश्यति स्म. सेरीति देशीशब्दोऽयम् // 318 // ततः-तदनन्तरं नरनाथो राजा प्रजापालः सहसा-अकस्मात् मदनसुन्दरीं दृष्ट्वा एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण चिन्तयति, मदनस्य-कामस्य वशं गच्छतीति मदनवशगा तया मदनसुन्दर्या नूनं-निश्चितं मम कुलं मलिनीकृतम् // 319 // तदा- तस्मिन्नवसरे एकं तु मया कोपान्धेन सता अयुक्तं कृतं. यत्कुष्ठिने स्वपुत्री दत्ता, द्वितीय पुनः अनया कामान्धया सत्या हीहीति खेदेऽयुक्ततरम्-अतिशयेनायुक्तं विहितं-कृतं, यत् स्वपतिं त्यक्त्वाऽन्यपतिः स्वीकृतः॥३२०॥ ३१८--अत्र "तस्सावास-पास सेरीह" सकारस्यासकृदावृत्त्या वृत्त्यनुप्रासः।। ३१९-अत्र मदनसुन्दर्या राजकुलमलिनीकारकत्वे मदनवश-गतत्वस्य हेतुतया कथनात् काव्यलिङ्गम् / 320 स्पष्टम् / // 62 // 1-567
SR No.600403
Book TitleSirisiriwal Kaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri, Bhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1963
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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