________________ पणिपति विधयमविकल्पितम गीर्वाणः प्राह किं तर्हिसे करोमि वदाधुना / स प्राह राजपुत्रीं मां परिणायय सादरम् // 920 // येनाऽयमपवादो मे समुत्तरति मस्तकात् / तदभावे चामूः कन्या भूयः प्राप्नोमि पूजिताः॥ 921 // चरित्रम्. अङ्गीकृतो महापुम्भिः सामान्योऽपि प्रकाशते। पूर्णचन्द्रास्थितो यबत् कुरङ्गो मलिनाऽऽत्मकः॥९२ २॥मेतार्यकथाततः सुरेण तद्वाक्यं प्रतिपत्तिपुरस्सरम् / दिव्यप्रभाव ऊर्णायु-मतार्याय व्यतीर्यत // 923 ॥छ नकम्. याचितस्तेन दत्ते ता-मसावन्यत् प्रभाषते / किश्चित्तदपि मच्छक्त्या विधेयमविकल्पितम् // 924 // वभाषे चैव रत्नानि महा(!)षि दिने दिने / पायुना स्रक्ष्यति श्रेष्ठा-न्याऽऽश्चर्य जनयन् जने // 925 // तेषां भृतमहास्थाल-दौकनीयपुरस्सरम् / याचनीयोऽवनीनाथः परिणेतुं स्वकन्यकाम् // 926 // इत्युक्त्वाऽन्तहिते देवे मेतार्येण निजः पिता / चक्रे गृहीतसंकेतः प्रथमं स्वार्थसिद्धये / / 927 // ततोऽसौ तत्पिता स्थाल-मूर्णायुमणिसंभृतम् / कृत्वाऽन्यत्र दिने भूपं ददर्श द्वारि संस्थितः // 928 // रत्नान्याऽदाय भूपेन प्रोचे भद्र ! प्रयोजनम् / ब्रूहि स प्राह कन्यां स्वां मत्पुत्राय वितीयंताम् // 929 // ततो राज्ञाऽज्ञतादोषाद् यदुक्तं भद्र ! सम्पति / तदुक्तं पुनरित्येवं विरुद्धं वक्तुं नार्हसि // 930 // इत्यकर्कशया वाचा निषिध्य प्रेषितो गृहम् / मेतार्यजनकः सन्तो नहि कर्कशभाषिणः // 931 // एवं दिने (दिने, यावद् रत्नान्यानीतवानसौ / तावत्कुतुहलाद्राज्ञाऽभयाय प्रतिपादितम् // 932 // दन दिने / पायुना मृतमहास्थाल- ब RECEISHERS ततश्च // 43 //