________________ Re% 5 रे रे !! मदङ्गजो भूत्वा विरुद्धं कुरुषे किमु ? / इति पादे गृहीत्वा तं शिविकातोऽभ्यपातयत् // 907 // ततः क्षितिगतं भूयः प्रोचे जिहेषि किन्तु रे !! / तन्तुवायतमा तेन मेतार्थतच्चिकीर्षितम् // 908 // यत्क्रमेण समायातं कोलिकत्वं त्वयाऽधुना / न तेन लजितुं युक्तं देवाऽऽयत्ते हि जन्मनि // 909 / / उत्तिष्ठ गृहमेद्वाऽऽस्ते विततः पट ऊयताम् / स एव तावदन्येषां किलक्ष्म निष्पयोजनम् // 910 // इत्येवं मेदिनीभर्ता त मेतार्य यथा यथा / अब्रवीजनकादीनां ववृधे हीस्तथा तथा // 911 / / सर्वलोकमुखच्छायां कालीकृत्य निनाय तम् / मेतार्य स निज वेश्म शटितं कण्टकाऽऽवृतम् // 912 // यत्पश्यतामपि मोच्चै-श्चित्तोद्वेगः प्रजायते / वसतां तु विशेषेण दुर्गन्धिघनकश्मलम् // 913 // सत्राऽसौ पानगन्धेन मक्षिकाभिः समाकुले / आस्ते स्म पतितो गर्भ शोचनस्यन्तदुर्मनाः // 914 // प्रत्यक्षीभूय देवेन ततः प्रोचे न बुध्यसे / दुर्बुडे त्वं सुखेनैव तेनैतत्ते मया कृतम् // 915 // तदद्यापि गृहाणाऽऽशु धर्म सर्वज्ञभाषितम् / यावक्षिपामि नान्यस्यां महीयस्यामिहाऽऽपदि // 916 / / इत्युक्तो नम्रमू ऽसौ मेतार्योऽभाषताऽमरम् / प्रत्यागतस्मृतिर्देव ! किङ्करस्तेऽस्मि सम्प्रति // 917 // प्रसीद द्वादशाऽब्दानि यावदैषयिकं सुखम् / भुजेऽहं तावदूर्व तु कर्तास्म्याऽज्ञां त्वदीरिताम्॥९१८ // एवमस्त्विति देवेन प्रतिपन्ने दयालुना / मेतार्योऽवोचदीक्षः कथं भोक्ष्ये सुखं विभो! // 919 // CENGE