________________ RI चारत मणिपति॥४१॥ स्व:AE चरित्रम. मेतार्यकथा RS नकम्. दुधिलादक्मिासि-धर्मराभूद्ममेशी। यतः क्वचिदतो मन्ये दोषोऽपि हि गुणायते // 869 // एवं सध्यानता सम्यक् तपस्यन् गुरुसभिधौ / निन्दवद्यकर्माऽसौ राजसूनुः समस्थित // 870 // पुसेघसस्तनूजस्तु कथमेतेन विनाटितः / अहं पापेन लोकेऽत्र दुर्बुद्ध्येति विचिन्तयन् // 871 // तस्थौ प्रतिप्रवेशेवालातं निर्वाहयन् व्रतम् / कार्यान्तं परोघेना-ऽप्युर्यान्त्यभिमानिनः // 872 / / . एवं विशुडसंहिय-चेतसौ तौ तपश्चिरम् / कृत्वा गती दिवं सूनू गुणचन्द्र-पुरोधसोः // 87 // तत्राऽत्यन्तमहर्द्धथाढयौ त्रिदशौ चारुवर्चसौ / संजज्ञाते तपोलक्ष्म्या पञ्चत्कुण्डलमूषितौ // 874 // अन्यदा वन्दनामक्त्या गताभ्यो तीर्थनायकः / ताभ्यां महाविदेहस्थः संपृष्टः किल चेदृशम् // 875 // किमावां भगवन्नन्य (?) जातौ दुर्लभवोधिको / किं वा नेति प्रसादेन निवेदयितुमर्हसि // 876 // अहन्नपि जगौ राज्ञः सुतः सुलभबोधिकः / पुरोघसस्तु नेत्येवं ज्ञात्वा केवलचक्षुषा // 877 // तत्वा भूभुजा सूनोः पादयोः। पतितोऽब्रवीत् / पुरोधसः सुतो भद्र ! त्वया योध्योऽहमादात् // तेनोक्तं बोधयिष्यामि मोन्मनीभव निश्चितम् / पश्चात्तव यदि स्यान्मे च्यवनं सुरलोकतः // 879 // अन्यदाऽऽयुःक्षये तस्मा-दच्योष्टाऽसौ पुरोधसः / सुतः स्वर्गानहि प्रायः शाश्वतः कछि ऽऽश्रयः 880 // अथोदपादि मेदिन्या गर्भ राजगृहे पुरे / पुरा जातिमदोपात्त-कर्मदोषोदयादिह / / 881 / / न नभुजः सनोः पादाकः / पुरोधसमसादेन निवेदमित // 41 //