________________ बिजन तयोक्तं पुत्र ! नाद्यापि राज्यभारं मदात्मजो। शक्नुतः शैशवादोदु-मूढं पित्रा तवाश्रमम् // 778 // 3 ततो यदेवमुक्तोऽपि नाङ्गीचके जनन्यसौ / स्वयमेव तदा राज्य-मधितस्थौ (ष्ठौ)स पैतृकम् // 779 // ततोऽसौ राज्यलक्ष्मी तां पितेव परिपालयन् / आस्ते स्म लीलया तत्र त्रिदिवे देवराडिव // 780 // अन्यदा तस्य तां लक्ष्मी वीक्ष्य क्षुद्रा व्यचिन्तयत् / पद्मावतीदमश्लाघ्यं पुत्रराज्याऽभिलाषिणी 781 // अहो ! मयेदृशी लक्ष्मी-र्दीयमानाप्यनार्यया / नेष्टा पुरा स्वपुत्राभ्यां किमिदानी करोम्यहम् // 782 // केनोपायेन लक्ष्मीस्स्या-दिदानीमपि पुत्रयोः / मदीययोरियं पुण्य-संभारमभवोदया // 783 // अज्ञातमेनमेवाऽहं मुनिचन्द्रमलक्षितम् / कथञ्चिद हन्नि येन स्या-लक्ष्मी मत्पुत्रयोरियम् // 784 // एवमालोच्य साऽन्वेष्टु-मारेभे तस्य भूपतेः / छिद्राणि मारणायाऽहो !! नारीणामविवेकिता // 785 // अन्यदा मुनिचन्द्रोऽगात् तत्पुत्राभ्यां समन्वितः। चिक्रिडीधुर्मुदा पात-रुद्यानमिदमाविशत् / / 786 // याममध्ये ममाम्बाऽथ किश्चित्तत्रैव भोजनं / प्रेष्यं चेदया करे क्षुद्धा--नहमासेतरां यतः // ,787 // तावत्यामथ वेलायां धारिण्या सिंहकेशरी / मोदकश्चेटिकाहस्ते मेषितो द्राक् स्वसूनवे // 788 // / तां दृष्टवा निर्यती चेटी हस्तसंस्थितमोदकाम् / पद्मावत्यभणद् भद्रे ! किमर्थं प्रस्थिता द्रुतम् // 789 // तयोक मोदकं राज्ञे निवेदयितुमीशिनि ! / पद्मावत्यब्रवीद् भद्रे ! पश्याम्यर्पय कीरशम् // 790 // -